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04 मई 2013

कल बहुत प्रज्ञापराध हुए।


कल बहुत प्रज्ञापराध हुए।
मेरे पूर्व पड़ौसी, बेहतरीन प्रगतिशील और रूमानी शायर फारूक बख्शी की किताब 'वो चांद-चेहरा सी लड़की' का लोकार्पण समारोह था। साढ़े चार बजे घर से रवाना हुआ तो घर के भीतर का तापमान 30 31 से 35 डिग्री था। लेकिन बाहर निकलते ही भीषण गर्मी का अहसास हुआ। बाद में पता लगा कि बाहर तापमान 43.4 तक जा रहा था। खैर वर्धमान खुला विश्वविद्यालय के उस सभागार में जहाँ कार्यक्रम था ताप वातानुकूलन के माध्यम से मात्र 28 डिग्री था। तीन घंटे कार्यक्रम चला। शानदार कार्यक्रम रहा। तकरीरों के साथ ग़ज़ल संध्या का भी आनन्द लिया। आठ बजे सभागार बाहर निकले तो लू की लपट सी लगी।
आम तौर पर सुबह का नाश्ता ही लंच होता है। लंच में एक कप कॉफी और घर के बने स्नेक्स, शाम को फिर 9 बजे डिनर। लेकिन कल सुबह 9 बजे वास्तव में नाश्ता हुआ। फिर 12 बजे लंच भी हुआ। शाम छह बजे समारोह में मलाईदार मिठाई, कचौड़ी और वेफर्स भी मिेले और खूब शीतल जल भी। घर आ कर डिनर होते होते दस बज गए।
प्रज्ञापराधों का नतीजा आज सुबह देखने को मिला। सुबह साढ़े चार नींद खुली तो फिर लगी नहीं। अपनी ब्लेक कॉफी बना कर सुड़कते हुए ऑफिस में आ बैठा। उत्तमार्ध उठी और अगली काफी मिली तब तक सिर में दर्द हो चला। गनीमत ये रही कि पेट में कब्ज जमी नहीं। वर्ना बुरा हाल होता। खैर! पैरासिटामोल की एक टेबलेट गटक कर फिर से ऑफिस में आ बैठा हूँ। आखिर आज रविवार है, सब नहीं तो कुछ तो ऑफिस के पेंडिंग काम निपटाने पडेंगे।

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