मेरे प्यारे भारतवासियों ..मेरे दोस्तों ..मेरे बुजुर्गों ..कहते है आज
विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस था जो निकल सा गया है ......लेकिन प्रिंट
मिडिया ..इलेक्ट्रोनिक मिडिया ..वेब मिडिया ..सोशल साईट मिडिया के लियें एक
सवाल छोड़ गया है ...यह दिन चीख चीख कर कहता है के सभी पत्रकार बन्धुओं
..सम्पादकों ..मालिकों ..प्रकाशकों जरा अपने अपने सीने पर हाथ रखे और बताये
क्या वोह निष्पक्ष है क्या वोह स्वतंत्र है ..सभी अखबारों ..टीवी चेनलों
पर विज्ञापन का प्रभाव है ..गुलामी का प्रभाव है .देश के बढ़े जाने मने
पत्रकार भी मालिकों के आगे गुलामों की तरह हाथ बांधे खड़े रहते है और अगर
वोह खुद मालिक बन जाते है तो सरकार या उद्द्योगपतियों के आगे हाठ बंधे खड़े
रहते है .......हाँ सोशल मिडिया जिसमे हिंदी ब्लोगिंग हो या फिर फेसबुक
साईट हो खुल कर धड़ल्ले से अपने विचारों की स्वतन्त्रता बाहर निकलती है और
फेसबुक सोशल मिडिया के कारन ही अभिषेक मनु सिंघवी कोंग्रेसी नेता की
विस्फोटक खबर पत्रकारों से सोदेबाज़ी के बाद भी बहर आ गयी थी और उन्हें
मजबूरी में स्तीफा देना पढ़ा था ऐसी ना जाने कितनी खबरे है जिन्हें अख़बार और
इलेक्ट्रोनिक मिडिया रोकना चाहते है लेकिन सोशल मिडिया उसे बाहर निकाल कर
साड़ी सोदेबजी की प्लानिंग खत्म क्र देते है दोस्तों .....पत्रकारों
..सम्पादकों ..सोशल मिडिया से जुड़े लोगों सोदेबजों अकह्बरों को खरीदने वाले
उद्द्योगपतियों ....पत्रकारों को गुलाम बनाने वाले सियासी लोगों जरा अपने
अपने सीने पर हाथ रखे अपने बेजान इ धडकते दिल से पूंछे क्या वाकई प्रेस
स्वतंत्र है क्या वाकई इलेक्ट्रोनिक मिडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष है अगर
में गलत हूँ तो मेरा विरोध खुलकर करे और अगर सही हूँ तो मेरा खुल कर समर्थन
कर मेरी होसला अफजाई करें ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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