आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

06 मई 2013

आंसूंओं से तो अपना

आंसूंओं से तो अपना , नाता पुराना है ,
आंसुओं में अब तक , न कोई फर्क पाया है |
दर्द तब भी उठता था , दर्द अब भी उठता है ,
तब और अब के दर्द में , मीलों का फासला पाया |
बंद कमरों में खुद को महफूज़ समझते रहे ,
हर एक आहाट में दिल फिर था घबराया |
अँधेरे न रास आते थे , पर वो साथ निभाते थे ,
रौशनी से मिलने को , हम अक्सर मचलते रहे |
कई बार लांघा हदों को , कई बार टूट कर बिखरे
पर दर्द के सिवा कुछ भी , हमको हासिल नहीं हुआ |
मुंसुबें उची उड़ान के , मन अक्सर सजाता रहा ,
टूटकर बिखरने का खौफ , हिम्मत पस्त करता रहा |
चाहतों ने कभी , पीछे मुड़कर नहीं देखा ,
हरबार जहन में एक नया , सपना सजाता रहा |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...