--भाई
लोग का कहना है कि गर्लफ्रेंड बड़े पैसे खर्च करवाती है, ये करवाती है, वो
करवाती है. यहाँ तक कि एक भाई ने तो ये तर्क दिया कि लड़के आजकल जो चेन
स्नेचिंग जैसे छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं, गर्लफ्रेंड के खर्चे पूरे करने
के लिए कर रहे हैं...बेचारे...
तो भाई गर्लफ्रेंड बनाते क्यों हो? क्या
तुम्हें नहीं पता कि 'पैसे' के आधार पर बना रिश्ता मतलब का रिश्ता होता
है. गर्लफ्रैंड बनाकर दोस्तों पर रौब झाड़ने का शौक आपको है, कोई भी आपकी इस
मजबूरी का फ़ायदा उठाएगा ही. इसमें सिर्फ उसका दोष तो है ही नहीं, आपका भी
है. जो 'उपहारों' की लालच में आपसे जुड़ा है, वो आपसे ज़्यादा पैसे वाला
बन्दा पाकर उसके पास चला जाएगा. उर आप बैठे-बिठाए बेवकूफ बन जायेंगे.
--लोग कहते हैं कि शादी के पहले भाई-भाई मिलकर रहते हैं. शादी के बाद बहुएं
आती हैं और दो चूल्हा करवा देती हैं. अपने बेटे पर कोई इल्जाम नहीं लगाता.
अगर आप किसी की गलत सलाह मान रहे हैं, तो क्या इसमें आपकी गलती नहीं है?
मुझे कोई मेरी दीदी के खिलाफ भडकाकर दिखाए. वो दोस्त हो, प्रेमी हो या पति.
--इसी तरह लोग कहते हैं कि भ्रूण-हत्या
और दहेज जैसे मामलों में औरतें ही ज़्यादा दोषी होती हैं. चलिए मान लेते
हैं कि होती हैं, तो क्या पुरुषों की कोई गलती नहीं होती? इस देश में औरतों
को अपनी कोख पर अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. बहुत दिनों बाद जाकर
उन्हें गर्भधारण और गर्भपात का अधिकार मिला. अब भी बिना घरवालों की मर्ज़ी
के कोई औरत अकेली जाकर भ्रूण-हत्या के लिए गर्भपात करवा आती है, ऐसा मैं
नहीं मान सकती. ऐसा वह घरवालों के दबाव से करती है. अकेली नहीं. तो सिर्फ
औरत दोषी क्यों हुयी?
लोग कहते हैं कि औरतें चाह लें, तो ऐसा नहीं हो
सकता. अरे भाई, अगर औरतें विरोध करेंगी, तो क्या उन्हें घर में रहने दिया
जाएगा? आप खुद तो घरवालों के विरुद्ध जाकर अपनी मनपसंद लड़की से ब्याह नहीं
कर पाते, और घर की बहू से ये अपेक्षा की वो घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध
बेटी पैदा करे. और पता है आपको कई बार तो औरतों को मालूम ही नहीं होता, कि
उन्हें जाँच के बहाने डॉक्टर के पास ले जाकर भ्रूण-हत्या करवा दी जायेगी.
--इसी प्रकार बिना घर के पुरुषों की इच्छा के घर की औरतें दहेज मांगती हैं
या बहुओं को जला देती हैं, मैं ऐसा भी नहीं मानती. कोई एक ऐसा उदाहरण बता
दीजिए, जहाँ बिना पुरुषों की सहायता के सिर्फ घर की औरतों ने मिलकर बहुओं
को जला दिया हो.
'औरतें, औरतों की दुश्मन होती हैं' ये बात कहने से
पहले, अपने समाज की संरचना के बारे में ज्ञान अर्जित कीजिये. ये
पितृसत्तात्मक समाज है. यहाँ उसकी चलती है, जिसके पास सत्ता होती है और
अधिकतर घरों में सत्ता पुरुषों के हाथ में है. जहाँ औरतों के हाथ में भी
है, वहाँ भी शक्तिशाली, तेज-तर्रार या पैसे वाली औरतों के हाथ में. ऐसी
औरतें खुद पितृसत्तात्मक मूल्यों की वाहक बन जाती हैं. कमज़ोर व्यक्ति हमेशा
दबा रहता है, चाहे घर के अन्दर की बात हो या बाहर की, चाहे पुरुष हो या
स्त्री.
हमारा विरोध इस "सत्ता" का विरोध है, इससे जुड़ी मानसिकता का
विरोध, न कि स्त्री या पुरुष से विरोध. हम चाहते हैं कि समाज ऐसा बने,
जिसमें सभी को एक बराबर हक मिले और सत्ता किसी के भी हाथ में न हो.
--भाई
लोग का कहना है कि गर्लफ्रेंड बड़े पैसे खर्च करवाती है, ये करवाती है, वो
करवाती है. यहाँ तक कि एक भाई ने तो ये तर्क दिया कि लड़के आजकल जो चेन
स्नेचिंग जैसे छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं, गर्लफ्रेंड के खर्चे पूरे करने
के लिए कर रहे हैं...बेचारे...
तो भाई गर्लफ्रेंड बनाते क्यों हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि 'पैसे' के आधार पर बना रिश्ता मतलब का रिश्ता होता है. गर्लफ्रैंड बनाकर दोस्तों पर रौब झाड़ने का शौक आपको है, कोई भी आपकी इस मजबूरी का फ़ायदा उठाएगा ही. इसमें सिर्फ उसका दोष तो है ही नहीं, आपका भी है. जो 'उपहारों' की लालच में आपसे जुड़ा है, वो आपसे ज़्यादा पैसे वाला बन्दा पाकर उसके पास चला जाएगा. उर आप बैठे-बिठाए बेवकूफ बन जायेंगे.
--लोग कहते हैं कि शादी के पहले भाई-भाई मिलकर रहते हैं. शादी के बाद बहुएं आती हैं और दो चूल्हा करवा देती हैं. अपने बेटे पर कोई इल्जाम नहीं लगाता. अगर आप किसी की गलत सलाह मान रहे हैं, तो क्या इसमें आपकी गलती नहीं है? मुझे कोई मेरी दीदी के खिलाफ भडकाकर दिखाए. वो दोस्त हो, प्रेमी हो या पति.
--इसी तरह लोग कहते हैं कि भ्रूण-हत्या और दहेज जैसे मामलों में औरतें ही ज़्यादा दोषी होती हैं. चलिए मान लेते हैं कि होती हैं, तो क्या पुरुषों की कोई गलती नहीं होती? इस देश में औरतों को अपनी कोख पर अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. बहुत दिनों बाद जाकर उन्हें गर्भधारण और गर्भपात का अधिकार मिला. अब भी बिना घरवालों की मर्ज़ी के कोई औरत अकेली जाकर भ्रूण-हत्या के लिए गर्भपात करवा आती है, ऐसा मैं नहीं मान सकती. ऐसा वह घरवालों के दबाव से करती है. अकेली नहीं. तो सिर्फ औरत दोषी क्यों हुयी?
लोग कहते हैं कि औरतें चाह लें, तो ऐसा नहीं हो सकता. अरे भाई, अगर औरतें विरोध करेंगी, तो क्या उन्हें घर में रहने दिया जाएगा? आप खुद तो घरवालों के विरुद्ध जाकर अपनी मनपसंद लड़की से ब्याह नहीं कर पाते, और घर की बहू से ये अपेक्षा की वो घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध बेटी पैदा करे. और पता है आपको कई बार तो औरतों को मालूम ही नहीं होता, कि उन्हें जाँच के बहाने डॉक्टर के पास ले जाकर भ्रूण-हत्या करवा दी जायेगी.
--इसी प्रकार बिना घर के पुरुषों की इच्छा के घर की औरतें दहेज मांगती हैं या बहुओं को जला देती हैं, मैं ऐसा भी नहीं मानती. कोई एक ऐसा उदाहरण बता दीजिए, जहाँ बिना पुरुषों की सहायता के सिर्फ घर की औरतों ने मिलकर बहुओं को जला दिया हो.
'औरतें, औरतों की दुश्मन होती हैं' ये बात कहने से पहले, अपने समाज की संरचना के बारे में ज्ञान अर्जित कीजिये. ये पितृसत्तात्मक समाज है. यहाँ उसकी चलती है, जिसके पास सत्ता होती है और अधिकतर घरों में सत्ता पुरुषों के हाथ में है. जहाँ औरतों के हाथ में भी है, वहाँ भी शक्तिशाली, तेज-तर्रार या पैसे वाली औरतों के हाथ में. ऐसी औरतें खुद पितृसत्तात्मक मूल्यों की वाहक बन जाती हैं. कमज़ोर व्यक्ति हमेशा दबा रहता है, चाहे घर के अन्दर की बात हो या बाहर की, चाहे पुरुष हो या स्त्री.
हमारा विरोध इस "सत्ता" का विरोध है, इससे जुड़ी मानसिकता का विरोध, न कि स्त्री या पुरुष से विरोध. हम चाहते हैं कि समाज ऐसा बने, जिसमें सभी को एक बराबर हक मिले और सत्ता किसी के भी हाथ में न हो.
तो भाई गर्लफ्रेंड बनाते क्यों हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि 'पैसे' के आधार पर बना रिश्ता मतलब का रिश्ता होता है. गर्लफ्रैंड बनाकर दोस्तों पर रौब झाड़ने का शौक आपको है, कोई भी आपकी इस मजबूरी का फ़ायदा उठाएगा ही. इसमें सिर्फ उसका दोष तो है ही नहीं, आपका भी है. जो 'उपहारों' की लालच में आपसे जुड़ा है, वो आपसे ज़्यादा पैसे वाला बन्दा पाकर उसके पास चला जाएगा. उर आप बैठे-बिठाए बेवकूफ बन जायेंगे.
--लोग कहते हैं कि शादी के पहले भाई-भाई मिलकर रहते हैं. शादी के बाद बहुएं आती हैं और दो चूल्हा करवा देती हैं. अपने बेटे पर कोई इल्जाम नहीं लगाता. अगर आप किसी की गलत सलाह मान रहे हैं, तो क्या इसमें आपकी गलती नहीं है? मुझे कोई मेरी दीदी के खिलाफ भडकाकर दिखाए. वो दोस्त हो, प्रेमी हो या पति.
--इसी तरह लोग कहते हैं कि भ्रूण-हत्या और दहेज जैसे मामलों में औरतें ही ज़्यादा दोषी होती हैं. चलिए मान लेते हैं कि होती हैं, तो क्या पुरुषों की कोई गलती नहीं होती? इस देश में औरतों को अपनी कोख पर अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. बहुत दिनों बाद जाकर उन्हें गर्भधारण और गर्भपात का अधिकार मिला. अब भी बिना घरवालों की मर्ज़ी के कोई औरत अकेली जाकर भ्रूण-हत्या के लिए गर्भपात करवा आती है, ऐसा मैं नहीं मान सकती. ऐसा वह घरवालों के दबाव से करती है. अकेली नहीं. तो सिर्फ औरत दोषी क्यों हुयी?
लोग कहते हैं कि औरतें चाह लें, तो ऐसा नहीं हो सकता. अरे भाई, अगर औरतें विरोध करेंगी, तो क्या उन्हें घर में रहने दिया जाएगा? आप खुद तो घरवालों के विरुद्ध जाकर अपनी मनपसंद लड़की से ब्याह नहीं कर पाते, और घर की बहू से ये अपेक्षा की वो घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध बेटी पैदा करे. और पता है आपको कई बार तो औरतों को मालूम ही नहीं होता, कि उन्हें जाँच के बहाने डॉक्टर के पास ले जाकर भ्रूण-हत्या करवा दी जायेगी.
--इसी प्रकार बिना घर के पुरुषों की इच्छा के घर की औरतें दहेज मांगती हैं या बहुओं को जला देती हैं, मैं ऐसा भी नहीं मानती. कोई एक ऐसा उदाहरण बता दीजिए, जहाँ बिना पुरुषों की सहायता के सिर्फ घर की औरतों ने मिलकर बहुओं को जला दिया हो.
'औरतें, औरतों की दुश्मन होती हैं' ये बात कहने से पहले, अपने समाज की संरचना के बारे में ज्ञान अर्जित कीजिये. ये पितृसत्तात्मक समाज है. यहाँ उसकी चलती है, जिसके पास सत्ता होती है और अधिकतर घरों में सत्ता पुरुषों के हाथ में है. जहाँ औरतों के हाथ में भी है, वहाँ भी शक्तिशाली, तेज-तर्रार या पैसे वाली औरतों के हाथ में. ऐसी औरतें खुद पितृसत्तात्मक मूल्यों की वाहक बन जाती हैं. कमज़ोर व्यक्ति हमेशा दबा रहता है, चाहे घर के अन्दर की बात हो या बाहर की, चाहे पुरुष हो या स्त्री.
हमारा विरोध इस "सत्ता" का विरोध है, इससे जुड़ी मानसिकता का विरोध, न कि स्त्री या पुरुष से विरोध. हम चाहते हैं कि समाज ऐसा बने, जिसमें सभी को एक बराबर हक मिले और सत्ता किसी के भी हाथ में न हो.
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