आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

19 मई 2013

"गरीबी" किसे कहा जाय ?

"गरीबी" किसे कहा जाय ? --- इसकी कोई आर्थिक परिभाषा नहीं है और डॉक्टरों के अनुसार "भूख से मौत" नहीं होती मौत तो खून की कमी से होती है ...यह दीगर बात है कि खून की कमी का कारण भूख हो ...जब "गरीबी" और "भूख" की कोइ परिभाषा है ही नहीं तो अवधारणा से ही काम चलाया जा रहा है ...कभी योजना आयोग का सिरफिरा सरदार मोंटेक सिंह 32 व 26 रूपये रोज की समृद्धि का अर्थशास्त्र देता है तो अब गरीबी का उपहास उड़ाते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री 5 रूपये रोज में गुजारा करने वालों को गरीब नहीं ...भूखा नहीं बल्कि गरीबी की रेखा से ऊपर माध्यम वर्गीय मानती हैं .ऐसे ही गरीबी का उपहास उड़ाते सरकारी जुमले ही फ्रांस की क्रान्ति के उत्प्रेरक बने थे . फ़्रांस के राजा लुई 14 वें की पत्नी मैरी एंटोयनेट शाम को किले के कंगूरे पर बैठी थी ...किले के चारो और भूखी भीड़ धरना दिए रोटी मांग रही थी ...गरीबी से सर्वथा अनभिग्य मैरी एंटोयनेट ने पूछा कि "इन्हें जब रोटी नहीं मिलती तो केक क्यों नहीं खा लेते ?" मैरी एंटोयनेट की मूर्खता के हमशक्ल इस अबोध वक्तव्य से फ्रांस की क्रान्ति भड़का दी थी ...और अंत में एक दिन भूखी भीड़ फ्रांस के महल में घुस कर मैरी एंटोयनेट को बाल पकड़ कर सड़कों पर घसीट लाई थी ...सोनिया ,मोंटेक ,मनमोहन और अब शीला दीक्षित भी मैरी एंटोयनेटका भारतीय संस्करण हैं .
"समाज के आर- पार गरीबी की रेखा कैसे खींची ? --किसने खींची ? भारत में गरीबी की परिभाषा क्या हो ? --यह सवाल सबसे पहले 1957 में "भारतीय श्रम सम्मलेन" में उठे थे . 1962 में योजना आयोग के विशेषज्ञों ने इसके लिए "दांडेकर -रथ समिति" गठित की जिसने पोषण आवश्यकता" को गरीबी की कसौटी बनाया. दांडेकर -रथ समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्र के लिए 2100 कैलोरी की शक्ति दे सकने वाले भोजन को "न्यूनतम पोषण आवश्यकता" माना गया. विडंबना यह है कि यहाँ भोजन की गरिमा के विषय में कोई बात ही नहीं की गयी. इस प्रकार देश के दूर दराज के हिस्सों में रह रहे दीमक की चटनी खाते लोग. या सांप का फन काट कर शेष हिस्से को खाते लोग या जूठन खाते लोग आवश्यक कैलोरी का भोजन लेने के कारण गरीबी की रेखा के ऊपर हैं और मुम्बई में डोमिनो का पिज्जा खाने वाली करीना कपूर चूंकि मात्र 600 कैलोरी का भोजन लेने के कारण गरीबी की रेखा के नीचे है. इसी क्रम में आया "मनमोहन -मोंटेक सिंह का अर्थ शास्त्र " कि जिसके अनुसार अब वह भारत का नागरिक जो 32 रुपये प्रति दिन पाता है गरीबी की रेखा के नीचे नहीं है. जब देश स्वतंत्र हुआ था तब मात्र 9% लोग ही गरीबी की रेखा के नीचे थे. आज 40 % गरीबी की रेखा के नीचे और 30 % गरीबी की रेखा के ठीक ऊपर हैं, यानी देश के 70 % की आबादी दरिद्रों अतिदरिद्रों की है . देश के कुल 7 % लोगों को ही शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो पा रहा है. स्वास्थ सेवा पहाड़ सी हैं पर पिद्दी से मच्छर डेंगू से पराजित होती नज़र आती हैं. टाट - पट्टी स्कूल और अभिजात्य पब्लिक स्कूलों के बीच सामान मुफ्त शिक्षा का नारा हतप्रभ खड़ा है. विश्व की हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी है. 30 % महिलायें खुले मैं शौच जाने को अभिशिप्त हैं और झुनझुना बजाया जा रहा है महिलाओं के राजनीति में आरक्षण का. रोशनी , रास्ते , राशन और रोजगारों पर शहरों का कब्जा है और असली भारत बेरोजगार अँधेरे में उदास, अपमानित बैठा है."( श्रोत -- राजीव चतुर्वेदी लिखित पुस्तक "आर्तनाद-- मानवाधिकारों की उपेक्षा और अपेक्षा")" --- राजीव चतुर्वेदी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...