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19 मई 2013

फिर भी हम साथ है - पंकज त्रिवेदी

फिर भी हम साथ है - पंकज त्रिवेदी

तुम जानती हो
मैं कभी नहीं चाहता तुम्हारी चाहत की
कहीं भी किसी तरह तौहीन हो !

तुम जानती हो
मेरी चाहत किसी दायरे में बंधी नहीं है
और न चाहत की आड में कोई मंशा !

तुम जानती हो
तुम्हारी आँखों में उभरती तसवीर मेरी
तुम्हें ही प्रतिबिंबित करती है खुशी के नाम !

तुम जानती हो
मुझे प्यार जताना नहीं आता कभी
मगर छोटी सी बात पर आँखें नम होती है !

तुम जानती हो
तुम कईंबार कुछ कह देती हो तो मैं चुप और
मेरी बात पे कभी तुम्हारी चुप्पी होती है न?

तुम जानती हो
मैं कुछ न कहकर भी कुछ सह नहीं पाता हूँ
बच्चों की तरह तुम्हारे प्यार को पाने को बेताब !

तुम जानती हो
शायद यही कारण है कि तुम मुझे सह लेती हो
अपने अरमानों को दबाकर भी खुश रखती हो !

तुम जानती हो
कि मैं भी ये सब जानते हुए न जाने कितनी आशा
अपेक्षा के बीच झूलता हुआ, फिर भी हम साथ है !

1 टिप्पणी:

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