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19 मई 2013

घड़ोली एक चर्चा



विवाहों पर घड़ोली प्रथा की शुरुवात बहुत पुराने समय में हो गई थी. जब बरात जाती थी तो रस्ते में डाकू .. लुटेरे मिल जाते थे . कोई दुर्घटना इत्यादि की संभावना भी बनी रहती थी. उस पर शकुन शास्त्र के अनुसार यदि यात्रा के समय घर से निकलने पर सामने से पानी लता कोई दिख जाए तो मiन जाता था की शुभ शकुन हुआ. यह विश्वास किया जाता था की यात्रा सुखद एवं सुरक्षित होगी. पंजाबी में इसी पौन्खा कहा जाता है.इसलिए पानी लता कोई मिल जाता था तो उसके पानी में कोई सिक्का डाल दिया जाता था.आभार व्यक्त करने हेतु.
प्रथा चली तो घिसी भी जाने लगी . की बारात चलते समय कोई पाने लता न मिला तो ?घर के किसी व्यक्ति को इस काम पर लगाया जाता था.इस्त्रियाँ ही पानी लेन का काम करती थी.घेर ली लड़की को भेजना है तो बेटी को महत्त्व दिया गया की नेग स्वरुप धन उसी को मिले .घेरी की लड़की का चुनाव है तो ब्याहता को महत्त्व दिया गया की इस बहाने नेग उसकी सुसराल पहुंचे. इस prakaar नेग की रकम सिक्के से बढ़कर रुपया , चाँदी सोना और किसी कीमती उपहार तक जा पहुंची.
दिखावा तो ज़रूरी बन ही गया था इसलिए . लड़कियों की शादी में भी घड़ोली का रिवाज़ चल पड़ा. जबकि कोई बारात या पौन्खा की आवश्यकता नहीं थी. चलो कुछ सोचा जाये. अब इस घड़ोली के पानी के प्रयोग होनी लाहा दूल्हा या दुल्हन के नहाने के लिए.
अब घड़ोली के गीतों का अविष्कार भी हो गया.
भरी घड़ोली शीशेयाँ चाय वद्दि हाँ , मेडे वीर दी शादी हिम जग जश्न मनाई वद्दी हाँ.
मैं डू डू वेस बताये वंज वीरन कुन दिखलाये सरे लगदा विच मान अपना वधाई वड्डी हाँ
हाँ लड़कियों के विवाह पर घड़ोली के गीत की मुझे तलाश है.... कोई तो सहायता करो भाई.

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