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03 मई 2013

बुजुर्गों की अनदेखी ......


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जिंदगी का ये कैसा चलन हो चला है
जुल्म औलाद का बुजुर्गों पर प्रचलन हो चला है

रुकते न आंसू और ये तन रो चला है
इतना ढाया सितम अब ये मन रो चला है

फितरत बुजुर्गों पर जुल्मों - सितम हो चला है
बचे प्राण औलाद के रहमों - करम हो चला है

पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिक लक्षण हो चला है
यूँ ही रोते रोते बूढा अपना वजन ढो चला है

घर के कोने में बूढा एंटीक सामान हो चला है
अब यही जीवन उस पर मेहरबान हो चला है

मैले कपड़ों सा मैला मन हो चला है
बूढ़े को जल्दी से निबटाने का जतन हो चला है

झुंकी सी कमर ढीला बदन हो चला है
बुजुर्ग घडी दो घडी का महमान हो चला है ???

जो जुल्म किये अपनों ने वो बुजुर्ग खेता चला है
सह जुल्मों सितम फिर भी उन्हीं को दुआएं देता चला है.....अंजना

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