आपका-अख्तर खान

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01 मई 2013

हर बरस तेरी अदाओं का समाँ बिकता है/

हर बरस तेरी अदाओं का समाँ बिकता है/
दूर मज़दूर का बस्ती में मकाँ बिकता है/

तेरे बच्चों नें लिबासों की दुकानें खोलीं/
उसके फटते हुए कपड़ों से बदन दिखता है/

जिन ज़मीनों पे बड़ी शान से बनवाया महल/
हाथ खोलोगे कभी उसमें से ख़ूँ रिसता है/

दूध की नदियाँ बहा डाली फ़क़त शान रहे/
लिख रखा मुफ़लिसी तक़दीर कभी मिटता है/

एक राशन की दुकाँ खुल गयी बस्ती में नयी/
कितनी चक्की है एक इंसान वही पिसता है/

एक दफ़ा पास में आओ तो मेरा हाल सुनो/
घर जवाँ बेटी है और पास नहीं रिश्ता है/

हर शिफ़ाखानें सभी पांच सितारा दिखते/
उन दवा ख़ानों में मज़दूर कहा टिकता है/

आंकड़े कहते हैं हर ओर ही खुशहाली है/
जिसकी मर्ज़ी है जहाँ जो भी वही लिखता है/

-------------------------सलमान रिज़वी

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