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15 मई 2013

बहू को नौकरानी नहीं, परिवार का हिस्सा समझें:-



नई दिल्ली। दहेज की खातिर ससुराल में बहुओं के उत्पीड़न और जलाए जाने की घटनाओं पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बहू के साथ परिवार के सदस्य की तरह बर्ताव होना चाहिए, नौकरानी की तरह नहीं। ससुराल वालों की यातनाओं से तंग आकर खुदकुशी करने वाली महिला के पति को पांच साल कैद की सजा सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की।
जस्टिस केएस राधाकृष्णन व जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा, बहू को ससुराल में अन्य परिजनों के जितना ही प्यार और लगाव मिलना चाहिए, न कि अजनबी के जैसा घृणित व्यवहार किया जाए। हर बात पर ऐसी धमकी नहीं दी जानी चाहिए कि उसे कभी भी ससुराल से बेदखल किया जा सकता है। पत्नी अमरजीत कौर की हत्या के आरोप में सात साल की सजा को चुनौती देने वाले गुरनैब सिंह की अपील पर अदालत ने ये महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। पीठ ने गुरनैब को हत्या के आरोप से तो मुक्त किया, लेकिन खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी पाया और पांच साल की सजा सुनाई।
घटनाक्रम के मुताबिक, वर्ष 1996 में शादी के बाद से दहेज को लेकर अमरजीत को यातनाएं मिलने लगीं। उसने दो साल बाद ही कीटनाशक पीकर खुदकुशी कर ली। ट्रायल कोर्ट ने गुरनैब की मां और भाई को भी सात साल की सजा सुनाई थी। पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरनैब की सजा बरकरार रखी, लेकिन उसके भाई को बरी कर दिया। हाई कोर्ट में अपील लंबित रहने के दौरान गुरनैब की मां की मौत हो गई।
अदालत ने फैसले में लिखा, 'ससुराल में बहू को सम्मान, विवाह की पवित्रता और महत्व को बढ़ाने के अलावा सभ्य समाज की संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है। यह वास्तव में शादी के बाद बेशुमार खुशियां मिलने के लड़की के सपनों को पूरा करता है। लेकिन कभी कभार पति, ससुरालीजन और अन्य रिश्तेदारों की ओर से बहू के साथ होने वाले बर्ताव से समाज के संवेदनशून्य होने का अहसास होता है। इससे लड़की की जिंदगी की बर्बाद हो जाती है। ससुराल पहुंचते ही दहेज के लिए बहू के साथ क्रूरता और उत्पीड़न से जीने की उसकी ख्वाहिश खत्म हो जाती है और खुदकुशी करने को मजबूर कर देती है।'

''बहू को जलाकर मार देने या जिंदगी भर शारीरिक और मानसिक यातनाएं देने की घटनाएं शर्मनाक हैं।''

-सुप्रीम कोर्ट

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