आपका-अख्तर खान

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15 मई 2013

और इक इम्तिहान बाक़ी है


और इक इम्तिहान बाक़ी है
इसलिए थोडी जान बाक़ी है

सर से हर बोझ हट गया मेरे
सिर्फ़ इक आसमान बाक़ी है

मैं खतावार हूँ तिरा लेकिन
तेरे दिल का बयान बाक़ी है

मेरे हाथों में अब लकीरें नहीं
तेरे लब का निशान बाक़ी है

न रहा मैं तो कोई ग़म कैसा
अब भी तो ये जहान बाक़ी है

ज़ख्म तो कब के भर गये यारों
ज़ख्मों की दास्तान बाक़ी है

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