बन्दर
पकड़ने वाले लोग किसी बर्तन में छोटा सा छेद के उसमे मिठाइयाँ भर देते हैं |
जो भी बन्दर वह लेना चाहेगा वह उस बर्तन में हाथ डालेगा और मिठाई से
मुट्ठी भर लेगा | इस प्रकार वह बन्दर उस बर्तन से हाथ निकालने में असमर्थ
होगा | वह तभी हाथ बहार निकाल सकता है जब वह मुट्ठी खोल दे | भोजन के लालच
से वह न मुट्ठी खोलता है न वह मुक्त होता है |भोजन के प्रति उसकी इच्छा ने
ही उसे बांधा है |
यह विशाल विश्व पात्र है और हमारा 'संसार' अथवा
परिवार उसका संकीर्ण मुख है | हमारी इच्छायें उस बर्तन में राखी मिठाइयाँ
है | विश्व रूप बर्तन में इच्छा रुपी मिठाइयाँ होने के कारण मनुष्य बर्तन
में अपना हाथ डालता है | जब वह अपनी इच्छायें त्याग देता है तो वह विश्व
में मुक्त रूप से भ्रमण कर सकता है | मुक्ति को सर्वप्रथम बलिदान चाहिए |
दार्शनिक शब्दों में हम इसे त्याग कहते हैं | हम सोचते हौं कि विश्व हमें
बांध रखा है, किन्तु विश्व तो निर्जीव है | वास्तव में इच्छायें हमें
बांधती हैं |
यह विशाल विश्व पात्र है और हमारा 'संसार' अथवा परिवार उसका संकीर्ण मुख है | हमारी इच्छायें उस बर्तन में राखी मिठाइयाँ है | विश्व रूप बर्तन में इच्छा रुपी मिठाइयाँ होने के कारण मनुष्य बर्तन में अपना हाथ डालता है | जब वह अपनी इच्छायें त्याग देता है तो वह विश्व में मुक्त रूप से भ्रमण कर सकता है | मुक्ति को सर्वप्रथम बलिदान चाहिए | दार्शनिक शब्दों में हम इसे त्याग कहते हैं | हम सोचते हौं कि विश्व हमें बांध रखा है, किन्तु विश्व तो निर्जीव है | वास्तव में इच्छायें हमें बांधती हैं |
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