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25 मई 2013

पीसीसी सचिव विवेक वाजपेयी ने मौके का हाल सुनाया



हम लोग सुकमा से केशलूर की सभा में जा रहे थे। दरभा से करीब 7-8 किलोमीटर पहले ही घाटी की टर्निग में काफिला अचानक रुक गया। कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ। इतने में ही अचानक फायरिंग की आवाज सुनाई देने लगी। किसी को संभलने का मौका ही नहीं मिला। करीब 4.15 या 4.30 बजे थे। मैं अपनी इनोवा सीजी 10-9001 में बैठा था। नौवें या दसवें नंबर पर मेरी गाड़ी लगी थी। कुल मिलाकर करीब 20 गाड़ियां थीं।

सभी नक्सलियों के मुंह पर कपड़े बंधे हुए थे। एके 47 असाल्ट राइफल थी सबके हाथों में। मेरा ड्राइवर राजू था। वह हड़बड़ा गया। उसने गाड़ी की गति तेज कर दी और बच निकलने की जुगत लगाने लगा, लेकिन सामने गाड़ियों के जाम होने के कारण गाड़ी रुक गई।  सभी घबराए हुए थे। किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। कर्मा जी की गाड़ी मेरे आगे ही थी। सबकुछ मेरी आंखों के सामने ही हुआ।
मैं देख रहा था। लेकिन सभी मजबूर थे। मैं भी। उनकी गाड़ी भी फंस चुकी थी। आगे बम ब्लास्ट के कारण रास्ता बंद हो चुका था और एक ट्रक को रास्ते में आड़ा खड़ा कर दिया गया था। जैसे ही सारी गाड़ियां नक्सलियों को फंसी हुई नज़र आई, न जाने कहां से और भी नक्सलियों वहां पहुंचे और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। मेरी गाड़ी कर्मा जी की गाड़ी को कवर किए हुए ही थी। फायरिंग थमने तक सारे नेता सड़क पर आ चुके थे और लेट गए थे।

नक्सलियों की हरकत देखकर साफ जाहिर हो रहा था कि नक्सली महेन्द्र कर्मा को निशाना बनाना चाहते थे। वे बार बार पूछ रहे थे कि महेन्द्र कर्मा कौन हैं? जैसे ही उन्हें पता चला कि महेन्द्र कर्मा कौन हैं, उन्हें सामने लाकर नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी और उन्हें मार डाला। नक्सली इतने में ही शांत नहीं हुए। गोलियों से मारने के बाद कर्मा जी को बंदूकों की संगीनें भी घोंपी गईं। मारने के बाद भी वे लगातार उनकी शिनाख्त करने के लिए लोगों को बुला बुलाकर पूछते रहे। नक्सलियों के साथ काफी महिलाएं भी थीं। सभी चारों तरफ से घिरे हुए थे। महेन्द्र कर्मा के साथ फूलो देवी नेताम और मैं भी जमीन पर लेटा हुआ था। बाद में नक्सलियों ने सभी से हाथ उठाकर सामने आने को कहा। सभी ने सरेंडर कर दिया। मैंने भी किया। 

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