‘‘नहीं कहूँगा राधा, कुछ भी नहीं कहूँगा।
जताना ही पड़े यदि कहकर कुछ तो अपनापन क्या हुआ?’’
कान्हा ने मिजाज़ दिखाते हुए कहा और मुँह फेरकर बैठ गया बजाने बाँसुरी/
राधा मुस्कुरा दी सुनकर कृष्ण का उपालंभ
एक अजानी पीर में पिरोकर अपना संपूर्ण व्याकरण ज्ञान
यह भी नहीं कह सकी
‘‘बाँसुरी से पूछो तो सही कान्हा!, छिद्रों से बिंधे अस्तित्व के बावजूद
तुम्हारे होठों से लगते ही गुनगुनाने का यह हुनर
आखिर किस के मन से उधार लेकर आई है?’’
‘‘नहीं कहूँगा राधा, कुछ भी नहीं कहूँगा।
जताना ही पड़े यदि कहकर कुछ तो अपनापन क्या हुआ?’’
कान्हा ने मिजाज़ दिखाते हुए कहा और मुँह फेरकर बैठ गया बजाने बाँसुरी/
राधा मुस्कुरा दी सुनकर कृष्ण का उपालंभ
एक अजानी पीर में पिरोकर अपना संपूर्ण व्याकरण ज्ञान
यह भी नहीं कह सकी
‘‘बाँसुरी से पूछो तो सही कान्हा!, छिद्रों से बिंधे अस्तित्व के बावजूद
तुम्हारे होठों से लगते ही गुनगुनाने का यह हुनर
आखिर किस के मन से उधार लेकर आई है?’’
जताना ही पड़े यदि कहकर कुछ तो अपनापन क्या हुआ?’’
कान्हा ने मिजाज़ दिखाते हुए कहा और मुँह फेरकर बैठ गया बजाने बाँसुरी/
राधा मुस्कुरा दी सुनकर कृष्ण का उपालंभ
एक अजानी पीर में पिरोकर अपना संपूर्ण व्याकरण ज्ञान
यह भी नहीं कह सकी
‘‘बाँसुरी से पूछो तो सही कान्हा!, छिद्रों से बिंधे अस्तित्व के बावजूद
तुम्हारे होठों से लगते ही गुनगुनाने का यह हुनर
आखिर किस के मन से उधार लेकर आई है?’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)