आपका-अख्तर खान

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01 मई 2013

इतनी दूर आ गए हैं की

इतनी दूर आ गए हैं की
अब लौटना - मुश्किल हो गया .
जीवन की भूल भुलैया में
वो बचपन - ना जाने कहाँ खो गया .

आ लौट चलें - फिर वहीँ
सपनों की - अपनों की
उसी दुनिया में - जहाँ
फ़िक्र की मंजिल - स्कूल से
आगे नहीं जाती थी .

आँखें - रोती नहीं -
घडयाली आसूं बहाती थी .
बड़ों की कोई सीख -
जरा भी मन को नहीं भाती थी .

समय का फेर -
आज देखो कितना बड़ा है .
मेरा आज - कसकर
मेरी ऊँगली पकडे खड़ा है .

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