गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस
एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो -या
चुपचाप अपने घर में -
निष्प्रयोजन पड़े रहो .
बचाने कोई नहीं आने वाला - तुम्हें
वक्त फूल मालाएं भी चढ़ा देगा - इस
इंतजार में तस्वीर से यूँही मत जड़े रहो .
जुए का दाव नहीं है - जीवन
ये उसी का होता है - जो लड़कर
इसे सर करता है - वर्ना काल तो
अवश्यम्भावी है - हर आदमी
मौत -बेमौत यहाँ मरता है .
गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस
एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो -या
चुपचाप अपने घर में -
निष्प्रयोजन पड़े रहो .
बचाने कोई नहीं आने वाला - तुम्हें
वक्त फूल मालाएं भी चढ़ा देगा - इस
इंतजार में तस्वीर से यूँही मत जड़े रहो .
जुए का दाव नहीं है - जीवन
ये उसी का होता है - जो लड़कर
इसे सर करता है - वर्ना काल तो
अवश्यम्भावी है - हर आदमी
मौत -बेमौत यहाँ मरता है .
एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो -या
चुपचाप अपने घर में -
निष्प्रयोजन पड़े रहो .
बचाने कोई नहीं आने वाला - तुम्हें
वक्त फूल मालाएं भी चढ़ा देगा - इस
इंतजार में तस्वीर से यूँही मत जड़े रहो .
जुए का दाव नहीं है - जीवन
ये उसी का होता है - जो लड़कर
इसे सर करता है - वर्ना काल तो
अवश्यम्भावी है - हर आदमी
मौत -बेमौत यहाँ मरता है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)