आपका-अख्तर खान

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18 अप्रैल 2013

गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस

गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस
एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो -या
चुपचाप अपने घर में -
निष्प्रयोजन पड़े रहो .

बचाने कोई नहीं आने वाला - तुम्हें
वक्त फूल मालाएं भी चढ़ा देगा - इस
इंतजार में तस्वीर से यूँही मत जड़े रहो .

जुए का दाव नहीं है - जीवन
ये उसी का होता है - जो लड़कर
इसे सर करता है - वर्ना काल तो
अवश्यम्भावी है - हर आदमी
मौत -बेमौत यहाँ मरता है .

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