आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

30 अप्रैल 2013

इँसाफ़ की चाह में चप्पलें क्या उमर भी घिस जाती हैं,

इँसाफ़ की चाह में चप्पलें क्या उमर भी घिस जाती हैं,
कचहरी की सीढियां चढ़ते ही तकदीरें भी पिस जाती है ।
मिलती तारीखों का रोना ही लेकर बैठा रहे इन्सान !
फैसला आने तक नये वकीलों की खेप लग जाती है ।
उसके हिस्से झुर्रियाँ चढ़तीं साल दर साल ही सदा,
उधर वकील-बाबू की झोलियाँ भरती चली जाती है ।
काला कोट, यदि कमज़र्फ़ मिला तो फिर समझिये !
जीते जी बन्दे की जिन्दगानी, दफ़न होती जाती है ।
कोई ईश्वरी चेतना मिल जाये तो ठीक ! नहीं तो,
यमदूत की शक्ल ले, वसूलियाँ कर ली जाती हैं ।
दाग नही लगता काले लिबास पर कभी भी,
इसीलिए वकील को काले कोट की पोशाक दी जाती है ।
बंधी पट्टी कानून की देवी की आँखों में हमेशा से,
मुल्तवी होते केशों से, बन्दों की आँख खुल जाती है ।

भिखारी भी भीख नही मांगते, दर्द में डूबे बेज़ारों से !
पर कचहरी में इन्हें कोई तवज्जो नही मिल पाती है ।

कोर्ट है ... साहिब ...ये कचहरी है !
मरने की ज़रुरत नही, जीते जी जहन्नुम दिख जाती है ।......अनुराग

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...