"अब बसंत की ह्त्या होते पतझड़ में मैं देख रहा हूँ ,
और तितलियाँ बंगलों के गमलों पर बैठी
जंगल के जज़्बात समझती देवदार को दुआ दे रहीं
सरहद का हर देवदार आंधी की पैमाइश करता दावानल की दहशत में है
अंगारों के श्रृंगारों की चिंता अब चिंगारी को है
कुछ ऐसी ही असमंजस में घिसे पिटे जुमलों पर बैठी परिभाषाएं
सच की सीमा परिधि नापती हांफ रही हैं ." ----राजीव चतुर्वेदी
और तितलियाँ बंगलों के गमलों पर बैठी
जंगल के जज़्बात समझती देवदार को दुआ दे रहीं
सरहद का हर देवदार आंधी की पैमाइश करता दावानल की दहशत में है
अंगारों के श्रृंगारों की चिंता अब चिंगारी को है
कुछ ऐसी ही असमंजस में घिसे पिटे जुमलों पर बैठी परिभाषाएं
सच की सीमा परिधि नापती हांफ रही हैं ." ----राजीव चतुर्वेदी
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