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23 अप्रैल 2013

फोटो खिंचाने से बचने वालीं शमशाद बेगम मौत के बाद भी रहीं गुमनाम, घंटों बाद दुनिया को हुई खबर


मुंबई. एक तरफ दि‍ल्‍ली के एम्‍स में भर्ती गुड़ि‍या अपने पि‍ता की गोद में चहकने लगी है और देश की नजरों का नूर बनी हुई है तो दूसरी तरफ सदाबहार गानों की मलिका पद्मश्री शमशाद बेगम बहुत ही खामोशी के साथ चली गईं। सचिन के 40वें जन्‍मदिन की खबरों के लिए विशेष तैयारी में मशगूल मीडिया को भी उनकी मौत की खबर काफी देर बाद मिली। 23 अप्रैल की रात मुंबई स्‍थित एक अस्‍पताल में शमशाद बेगम का नि‍धन हो गया। एक जमाने में उनके आगे पीछे डोलने वाले बॉलीवुड की तरफ से उन्‍हें आखि‍री सलाम करने कोई नहीं पहुंचा। उनके जनाजे में भी चुनिंदा मि‍त्र व रि‍श्‍तेदार ही थी। मीडिया में भी उनके निधन की खबर बुधवार सुबह ही आई।
 
पि‍छले वर्ष से ही शमशाद बेगम की तबि‍यत नासाज थी। उन्‍हें सुनाई भी कम देता था। उम्र उनकी सेहत पर हावी हो चुकी थी। शमशाद बेगम की बेटी उषा ने बताया कि वह पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ थीं और अस्पताल में थीं। पिछली रात उनका निधन हो गया। उनके जनाजे में सिर्फ कुछ मित्र मौजूद थे। वर्ष 1955 में अपने पति गणपत लाल बट्टो के निधन के बाद से शमशाद मुंबई में अपनी बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रह रही थीं। उनकी नजदीकी इंदौर नि‍वासी डॉ.रायसिंघानी कहती हैं उनके कमरें में ढेरों ट्राफियां और अवाड्र्स करीने से सजाकर रखे गए हैं, लेकिन जब भी वह उनके घर गईं, शमशाद बेगम ने खासतौर पर हमेशा ग्रेट गोल्डन अवार्ड दिखाया।। 
 
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को लाहौर में हुआ था। ये बचपन से ही के.एल. सहगल की बिग फैन थीं और इन्होंने 'देवदास' फिल्म 14 बार देखी थी। शमशाद बेगम ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत 16 दिसंबर, 1947 को पेशावर रेडियो से शुरू किया था। इनकी सम्मोहक आवाज ने महान संगीतकार नौशाद और ओ.पी. नैय्यर का ध्यान अपनी ओर खींचा और इन्होंने फिल्मों में प्लेबैक सिंगर के रूप में इन्हें ब्रेक दिया। इसके बाद तो शमशाद बेगम की सुरीली आवाज ने लोगों को इनका दीवाना बना दिया। 50, 60 और 70 के दशक में ये म्यूज़िक डायरेक्टर्स की पहली पसंद बनी रहीं। शमशाद बेगम ने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी गाया। इन्होंने अपना म्यूज़िकल ग्रुप 'द क्राउन थिएट्रिकल कंपनी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट' बनाया और इसके माध्यम से पूरे देश में अनेकों प्रस्तुतियां दीं। इन्होंने कुछ म्यूज़िक कंपनियों के लिए भक्ति गीत भी गाए।
 
उन्होंने हिंदी-उर्दू फिल्मों में पांच सौ से ज्यादे गाने गाये, जिनमें से दर्ज़नों गाने आज भी पुराने फ़िल्मी गीत-प्रेमियों की पसंद बने हुए हैं। उनके गाये कुछ सदाबहार गीत हैं - 'छोड़ बाबुल का घर', 'होली आई रे कन्हाई', 'गाडी वाले गाडी धीरे हांक रे' ( मदर इंडिया ), 'तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़मा कर' ( मुग़ल-ए-आज़म ), 'मेरे पिया गए रंगून' ( पतंगा ), 'कभी आर कभी पार' ( आर पार ), 'लेके पहला पहला प्यार', 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' ( सी .आई .डी ), 'मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का' ( बाबुल ), 'बचपन के दिन भुला न देना' ( दीदार ), 'दूर कोई गाए' ( बैजू बावरा ), 'सैया दिल में आना रे' ( बहार ), 'मोहन की मुरलिया बाजे', 'धरती को आकाश पुकारे' ( मेला ), 'नैना भर आये नीर' ( हुमायूं ), 'मेरी नींदों में तुम' ( नया अंदाज़ ), 'कजरा मुहब्बत वाला' ( क़िस्मत ) आदि। फिल्म संगीत में योगदान के लिए भारत सरकार ने 2009 में उन्हें 'पद्मभूषण' से नवाज़ा।

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