सफ़र में रोशनी की जब दुआयें माँगता हूँ
मैं अपनी माँ के क़दमों से जि़यायें माँगता हूँ।
मुझे महसूस होता है कि हूँ मैं क़र्बला में
मैं अपने भाईयों से जब वफ़ायें माँगता हूँ।
दरख़्तों के हज़ारों दर्द उग जाते हैं मुझमें,
नए पौधों से जब ताज़ी हवायें माँगता हूँ।
सज़ाएं दूसरों की अब तलक़ काटी हैं मैने
मैं अब अपने गुनाहों की सज़ायें माँगता हूँ।
न मक्का ही गया हूँ मै ना जा पाया मदीना,
मगर मैं हाजियों के संग दुआयें माँगता हूँ।
तआस्सुब के घने बादल नहीं दरकार मुझको,
ख़ुदाया मैं तो रहमत की घटाएं माँगता हूँ।
निग़ाहें उनपे अपनी इसलिए रख़ता हूँ यारों,
परिंदों से मैं उड़ने की अदायें माँगता हूँ।
मैं अपनी माँ के क़दमों से जि़यायें माँगता हूँ।
मुझे महसूस होता है कि हूँ मैं क़र्बला में
मैं अपने भाईयों से जब वफ़ायें माँगता हूँ।
दरख़्तों के हज़ारों दर्द उग जाते हैं मुझमें,
नए पौधों से जब ताज़ी हवायें माँगता हूँ।
सज़ाएं दूसरों की अब तलक़ काटी हैं मैने
मैं अब अपने गुनाहों की सज़ायें माँगता हूँ।
न मक्का ही गया हूँ मै ना जा पाया मदीना,
मगर मैं हाजियों के संग दुआयें माँगता हूँ।
तआस्सुब के घने बादल नहीं दरकार मुझको,
ख़ुदाया मैं तो रहमत की घटाएं माँगता हूँ।
निग़ाहें उनपे अपनी इसलिए रख़ता हूँ यारों,
परिंदों से मैं उड़ने की अदायें माँगता हूँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)