"रात की स्याही पे सूरज के दस्तखत सी सुबह,
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में,
जिन्दगी के ऊंचे मचानो पर वहां बैठे जो हैं
सत्य के शातिर शिकारी ---उनको देखो
कुछ मकानों पर चहक गुलजार सी देखो
कुछ मकानों पर उदासी चस्पा है
रेंगते हैं राह में गुमराह से अरमान
लौठेगे उदासी का परचम लिए पहचान लेना शाम को
रात से बाकी बचा है इस सुबह का शेषफल है अब यही
और वह जो शोर है शान्ति को झकझोरता सा
संगीत मत कहना उसे
उठो ---शाम को तुम जब घायल से लौटोगे
घर की हर दहलीज अपनी चाह से तेरी राह देखेगी
यह सच तो भौतिक है मगर चाहो तो इसको भावना का नाम दे देना
और वह जो भीड़ है चल पड़ी है सत्य की शव यात्रा के साथ
सत्य के कातिल कल उसे श्रद्धांजली भी दे रहे होंगे,
---अखबार का व्यापार उनका है
हमारी हर वेदना
...शातिर संवेदना सरकारी...सूचना की तस्करी का तस्करा
सत्य की लाबारिस सी लाशें सूचना उद्योग का कच्चा माल हैं
उत्पाद की तो असलियत तुम जानते हो
रात को चादर ओढ़ कर सोये थे जो सपने हमारे जग गए हैं
रात की स्याही पे सूरज के दस्तखत सी सुबह,
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में." -----राजीव चतुर्वेदी
"रात की स्याही पे सूरज के दस्तखत सी सुबह,
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में,
जिन्दगी के ऊंचे मचानो पर वहां बैठे जो हैं
सत्य के शातिर शिकारी ---उनको देखो
कुछ मकानों पर चहक गुलजार सी देखो
कुछ मकानों पर उदासी चस्पा है
रेंगते हैं राह में गुमराह से अरमान
लौठेगे उदासी का परचम लिए पहचान लेना शाम को
रात से बाकी बचा है इस सुबह का शेषफल है अब यही
और वह जो शोर है शान्ति को झकझोरता सा
संगीत मत कहना उसे
उठो ---शाम को तुम जब घायल से लौटोगे
घर की हर दहलीज अपनी चाह से तेरी राह देखेगी
यह सच तो भौतिक है मगर चाहो तो इसको भावना का नाम दे देना
और वह जो भीड़ है चल पड़ी है सत्य की शव यात्रा के साथ
सत्य के कातिल कल उसे श्रद्धांजली भी दे रहे होंगे,
---अखबार का व्यापार उनका है
हमारी हर वेदना
...शातिर संवेदना सरकारी...सूचना की तस्करी का तस्करा
सत्य की लाबारिस सी लाशें सूचना उद्योग का कच्चा माल हैं
उत्पाद की तो असलियत तुम जानते हो
रात को चादर ओढ़ कर सोये थे जो सपने हमारे जग गए हैं
रात की स्याही पे सूरज के दस्तखत सी सुबह,
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में." -----राजीव चतुर्वेदी
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में,
जिन्दगी के ऊंचे मचानो पर वहां बैठे जो हैं
सत्य के शातिर शिकारी ---उनको देखो
कुछ मकानों पर चहक गुलजार सी देखो
कुछ मकानों पर उदासी चस्पा है
रेंगते हैं राह में गुमराह से अरमान
लौठेगे उदासी का परचम लिए पहचान लेना शाम को
रात से बाकी बचा है इस सुबह का शेषफल है अब यही
और वह जो शोर है शान्ति को झकझोरता सा
संगीत मत कहना उसे
उठो ---शाम को तुम जब घायल से लौटोगे
घर की हर दहलीज अपनी चाह से तेरी राह देखेगी
यह सच तो भौतिक है मगर चाहो तो इसको भावना का नाम दे देना
और वह जो भीड़ है चल पड़ी है सत्य की शव यात्रा के साथ
सत्य के कातिल कल उसे श्रद्धांजली भी दे रहे होंगे,
---अखबार का व्यापार उनका है
हमारी हर वेदना
...शातिर संवेदना सरकारी...सूचना की तस्करी का तस्करा
सत्य की लाबारिस सी लाशें सूचना उद्योग का कच्चा माल हैं
उत्पाद की तो असलियत तुम जानते हो
रात को चादर ओढ़ कर सोये थे जो सपने हमारे जग गए हैं
रात की स्याही पे सूरज के दस्तखत सी सुबह,
शब्द की भगदड़ भी देखो सुबह के अखबार में." -----राजीव चतुर्वेदी
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