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17 अप्रैल 2013

मोदी क्या अब तो आडवाणी को भी समर्थन नहीं देगी जदयू, एनडीए से होगी बाहर!

नई दिल्ली. बीजेपी और जदयू के बीच जारी बयानबाजी का असर राजग गठबंधन पर पड़ा है। बिहार के सूचना व जनसंपर्क मंत्री वृशिण पटेल ने कहा है कि जदयू-भाजपा गठबंधन में अब कोई दम नहीं है। उन्होंने बुधवार को हाजीपुर में कहा कि इस गठबंधन में कुछ भी नहीं बचा है, उम्मीद का दौर भी खत्म हो चुका है। जदयू अपनी राह पर है और बीजेपी अपनी। उन्होंने कहा, इससे बिहार सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर कोई असर पड़ेगा भी जदयू इसे झेलने को तैयार है।
 
पटेल ने कहा कि गठबंधन मुद्दों के आधार पर बनते और टूटते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो बात कह दी है, पूरी पार्टी उनके साथ है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो रेखा खींच दी है, उसके अर्थ बहुत स्पष्ट हैं। नरेंद्र मोदी हमें स्वीकार नहीं। हालांकि मुख्यमंत्री ने मोदी का नाम नहीं लिया। उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि हमें वही नेता स्वीकार होगा जो धर्मनिरपेक्ष हो और सबको साथ लेकर चले।
 
मंत्री ने एक कदम आगे बढ़ते हुए यहां तक कह दिया कि अब जदयू मोदी क्या, लालकृष्ण आडवाणी और दूसरे भाजपा नेताओं पर विचार करने को भी तैयार नहीं है। अब बात खत्म हो चुकी है। मंगलवार को जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता शिवानंद तिवारी ने भी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और आडवाणी में कोई अंतर न होने की बात कहकर संकेत दे दिए थे कि जदयू अब राजग से बाहर का रास्ता देख रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए उसे अब किसी भी भाजपा नेता के नाम से परहेज है। 
 
अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, यह बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना ने भी राजनाथ सिंह और उनकी टीम के सामने बड़ी मुश्किल पेश कर दी है। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में पार्टी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे  ने एक लेख में राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज से पूछा है कि बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन है? लेख के मुताबिक, 'बीजेपी का एक गुट नरेंद्र मोदी () के नाम ले रहा तो हंगामा हो रहा है। क्या नरेंद्र मोदी बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं?'
 
'सामना' में छपे लेख में ठाकरे ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी  ( पर परोक्ष तौर पर निशाना साधा है। उद्धव का कहना है कि अगर कोई नेता (यहां इशारा मोदी की तरफ माना जा सकता है) प्रोजेक्ट किया जाता है तो 5-10 सीटें ज्यादा आ सकती हैं। लेकिन पुराने सहयोगी (यहां इशारा जेडीयू की तरफ है) अलग होते हैं तो 5-25 सीटों का फर्क आ सकता है। शिवसेना का कहना है कि पीएम पद के प्रत्याशी के नाम का एलान करने से पहले एनडीए को विश्वास में लेना होगा। 20 अप्रैल को आडवाणी के घर पर संसद सत्र के दूसरे चरण की रणनीति तय करने के लिए एनडीए नेताओं की बैठक होगी। इस बैठक में जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते पर भी विचार किया जा सकता है।
 
शिवसेना से पहले जेडीयू ने बीजेपी को प्रधानमंत्री के दावेदार का नाम घोषित करने के लिए दिसंबर तक की 'डेडलाइन' दी है। साथ ही इशारों-इशारों में मोदी के नाम पर एतराज भी जता दिया है। नरेंद्र मोदी को लेकर न तो बीजेपी झुकती दिख रही है और न ही उनका मुखर विरोध कर रही जेडीयू इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार है। दोनों तरफ से जोरदार बयानबाजी चल रही है। बीजेपी की ओर से गिरिराज सिंह कह चुके हैं कि उनकी पार्टी मोदी का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगी और अब आरपार की लड़ाई का वक्त आ गया है। बीजेपी के इस तल्ख तेवर पर जेडीयू ने भी पलटवार किया है। जेडीयू की तरफ से दिनेश ठाकुर ने कहा है कि अगर कोई दो-दो हाथ करना चाहता है तो वह मैदान में आ सकता है। सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आई है कि राजनाथ सिंह ने बीजेपी की बिहार ईकाई के नेताओं से कहा है कि वे दिसंबर तक इंतजार करें और तब तक बयानबाजी से बचें। लेकिन इस मुद्दे पर तेजी से बदल रहे हालात के मद्देनजर कभी भी दोनों पार्टियों की 17 साल पुरानी 'दोस्ती' टूट सकती है।

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