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11 अप्रैल 2013

"इस मुस्कुराती सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो

"इस मुस्कुराती सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो
जजवात मेरे तेरी जागीर नहीं हो सकते
रिश्ते तो रिश्ते हैं जंजीर नहीं हो सकते
जिन्दगी की हर गुमनाम सी गुंजाइश की नुमाइश करते लोग सुन लो
देह से होकर गुजरते रास्ते रिश्ते नहीं हो सकते
वह जो सूरज है जिन्दगी की रात में क्यों डूब जाता है ?
रोशनी क्यों बिक रही थी बस्तियों में रात को
तुलसी के पौधे पर अगरबत्ती जलाते लोग रातरानी की सुगंधें सोचते है
रात को बदनाम किसने कर दिया है
एक सूरज जल उठा है और तुम ठन्डे पड़े हो
धूप से सहमे हुए हो, चांदनी चर्चित है क्यों ?
आत्मा के आवरण को व्याकरण किसने कहा ?
सूरज के पिघलने पर धूप बहती है पहाड़ों से
वहां एक झरना फूटा है
शब्द बहते हैं वहां संकेत के
कह रहे है इस सुबह के क़त्ल में साजिश तुम्हारी है
धूप चिल्लाने लगी है अब सड़क पर
याद रखना सत्य का संगीत रागों से परे है
इस मुस्कुराती सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो
जजवात मेरे तेरी जागीर नहीं हो सकते " ----राजीव चतुर्वेदी

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  2. ये तो आत्मा का चीत्कार है ...क्या हुआ जो वो रिश्ते नहीं निभाते , तुम ही निभा लो ...हम खुद से ये भी कह सकते हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
    पधारें "आँसुओं के मोती"

    जवाब देंहटाएं

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