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12 अप्रैल 2013

सच यही है अगर अख़बार ,,,मिडिया और ऐसे चेनल सरकार घोषणाएं के लियें होती है

सच यही है अगर  अख़बार ,,,मिडिया और ऐसे चेनल सरकार   घोषणाएं  के लियें होती है उन्हें छापते है या  फिर दिखाते है उन्ही घोषणाओं की क्रियान्विति के बारे में अगर पीछे पढ़ जाये तो यकीनन सरकारें चाहे कोई भी हो नंगी हो जाएँगी क्योंकि मुसलमानों को जो भी दिया जाता है वोह सिर्फ घोषणाओं में या फिर कागजों में दिया जाता है हकीक़त तो यह है के घोषणाओं का दस प्रतिशत भी फायदा मुसलमानों को नहीं मिलता है एक तरफ तो इन अखबारी घोषणाओं से दुसरे समाज के लोग मुसलमानों को सरकार बहुत कुछ दे रही है समझ कर मुसलमानों से नफरत करने लगता है और दूसरी तरफ मुसलमानों को घोषणाओं की क्रियान्विति के नाम पर ठेंगे के आलावा कुछ नहीं मिलता है यकीन न हो तो हर बार का केंद्र या राज्यों की सरकारों का बजट उठाकर देख लोग और उनकी क्रियान्विति में सरकार की ढील पीएलओ बजट लेप्स के किस्से देख लो ..तो जनाब यह सही है के मीडिया जो घोषणा की उसकी कितनी क्रियान्विति हुई और मुसलमानों के लियें सही मायनों में क्या जरूरते है जो होना चाहिए सरकार नहीं कर रही है वोह बताये तो सरकार की पोल क्खुल कर रह जायेगी और जो दुसरे समाज के लोग मुसलमानों से इसीलियें नफरत करने लगे है के वॊह मिडिया और अख़बार की घोशनाएँ सही समझ कर यह मान लेते है के मुसलमानों की तो बल्ले बल्ले है वोह भी मुसलमानों के हाजरा हालात पर तरस खाने लगेंगे ..तो क्या मिडिया सर ऐसा कर सकेंगे आप पूरा सच नहीं सिर्फ दस फीसदी सच और कडवा सच दिखादे इंशा अल्लाह बहुत  सारे मसले हल हो जायेंगे ....मुसलमान जब कब्रिस्तान की बात करता है तो उसे कहा जाता है पढ़ी पढो पढ़ कर  बन गया हर घर में ओसत ग्रेजुएट ..बी एड ..इंजीनियर डॉक्टर बेरोजगार है तब भी तालीम से मुसलमानों को जोड़ो का बेवकूफी भरा नारा नेता लोग लगते है जबकि पढ़े लिखे मुसलमानों को नोकरी और रोज़गार का नर लगाना चाहिए लेकिन क्या करें जो मुसलमानों की मुखबिरी करता है जो मुसलमानों के ज़ुल्म सितम को सरकर की मजबूरी बता कर सरकार का बचाव करता है उसी मोलवी ..मोलाना और नेता को मुसलमानों की कयादत का सरकार ताज पहना देती है और फिर शोषण उत्पीडन का दोर शुरू होता है सरकारी सुविधाएँ लेकर यह त्नख्य्ये मुसलमान जो केवल नाम के ही मुस्लमान  होते है झूंठ बोलकर सरकार के गुणगान करते है फर्जी आंकड़े पेश कर गुमराह करते है और मुसलमानों की तरक्की के रोड़ा बन जाते है मिडिया भी ऐसे ही सरकारी तन्खाय्ये पुपाडियों से बाजे बजवा आकर दुल्हा बनजाते है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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