पुरुषों की दुनिया में स्त्री
.....
पुरुषों के षड़यंत्र से बेख़बर औरतें
रसोई के काम में जुटी रहती हैं
कपड़े धोती हैं झाड़ू-पोंचा लगाती हैं
बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं
आए-गए की आवभगत
बख़ूबी करती हैं स्त्रियां
ये स्त्रियां इतना काम क्यों करती हैं
क्यों नहीं सुबह उठकर आराम से पुरुषों की तरह
चाय की चुस्कियां लेते हुए अख़बार पढ़तीं
दूर तक मॉर्निंग वाक पर क्यों नहीं निकल जातीं
सहेलियों के आने पर
घर से बेपरवाह क्यों नहीं हो जाती हैं स्त्रियां
जैसे हो जाते हैं पुरुष
जब होते हैं अपने मित्रों के संग
ये स्त्रियां क्यों करती हैं घर से इतना प्यार
क्या स्त्रियों ने वह समाचार नहीं पढ़ा
मुम्बई के एक अस्पताल में हुए
आठ हज़ार भ्रूणों के गर्भपात में शामिल थीं
सात हज़ार नौ सौ निन्यानवे लड़कियां
दुनिया के एक करोड़ पिचासी लाख शरणार्थियों
और दो हज़ार विस्थापितों में से
पिचहत्तर फ़ीसदी हैं महिलाएं
हत्या की शिकार महिलाओं में
कितनी ही मारी जाती हैं
अपने ही लोगों के हाथों
ये स्त्रियां क्यों हैं जान कर अनजान
क्यों देती हैं जन्म पुरुषों को
क्यों नहीं लगा देती विराम
इन अनवरत चलने वाले षड़यंत्रों को
क्यों नहीं करतीं वे ऐसा
क्योंकि वे स्त्रियां हैं...
:: वीना करमचन्दानी की कविता... आज वीना जी का जन्मदिन है, इसलिए उन्हें इस कविता के माध्यम से अशेष शुभकामनाएं :
पुरुषों की दुनिया में स्त्री
.....
पुरुषों के षड़यंत्र से बेख़बर औरतें
रसोई के काम में जुटी रहती हैं
कपड़े धोती हैं झाड़ू-पोंचा लगाती हैं
बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं
आए-गए की आवभगत
बख़ूबी करती हैं स्त्रियां
ये स्त्रियां इतना काम क्यों करती हैं
क्यों नहीं सुबह उठकर आराम से पुरुषों की तरह
चाय की चुस्कियां लेते हुए अख़बार पढ़तीं
दूर तक मॉर्निंग वाक पर क्यों नहीं निकल जातीं
सहेलियों के आने पर
घर से बेपरवाह क्यों नहीं हो जाती हैं स्त्रियां
जैसे हो जाते हैं पुरुष
जब होते हैं अपने मित्रों के संग
ये स्त्रियां क्यों करती हैं घर से इतना प्यार
क्या स्त्रियों ने वह समाचार नहीं पढ़ा
मुम्बई के एक अस्पताल में हुए
आठ हज़ार भ्रूणों के गर्भपात में शामिल थीं
सात हज़ार नौ सौ निन्यानवे लड़कियां
दुनिया के एक करोड़ पिचासी लाख शरणार्थियों
और दो हज़ार विस्थापितों में से
पिचहत्तर फ़ीसदी हैं महिलाएं
हत्या की शिकार महिलाओं में
कितनी ही मारी जाती हैं
अपने ही लोगों के हाथों
ये स्त्रियां क्यों हैं जान कर अनजान
क्यों देती हैं जन्म पुरुषों को
क्यों नहीं लगा देती विराम
इन अनवरत चलने वाले षड़यंत्रों को
क्यों नहीं करतीं वे ऐसा
क्योंकि वे स्त्रियां हैं...
:: वीना करमचन्दानी की कविता... आज वीना जी का जन्मदिन है, इसलिए उन्हें इस कविता के माध्यम से अशेष शुभकामनाएं :
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पुरुषों के षड़यंत्र से बेख़बर औरतें
रसोई के काम में जुटी रहती हैं
कपड़े धोती हैं झाड़ू-पोंचा लगाती हैं
बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं
आए-गए की आवभगत
बख़ूबी करती हैं स्त्रियां
ये स्त्रियां इतना काम क्यों करती हैं
क्यों नहीं सुबह उठकर आराम से पुरुषों की तरह
चाय की चुस्कियां लेते हुए अख़बार पढ़तीं
दूर तक मॉर्निंग वाक पर क्यों नहीं निकल जातीं
सहेलियों के आने पर
घर से बेपरवाह क्यों नहीं हो जाती हैं स्त्रियां
जैसे हो जाते हैं पुरुष
जब होते हैं अपने मित्रों के संग
ये स्त्रियां क्यों करती हैं घर से इतना प्यार
क्या स्त्रियों ने वह समाचार नहीं पढ़ा
मुम्बई के एक अस्पताल में हुए
आठ हज़ार भ्रूणों के गर्भपात में शामिल थीं
सात हज़ार नौ सौ निन्यानवे लड़कियां
दुनिया के एक करोड़ पिचासी लाख शरणार्थियों
और दो हज़ार विस्थापितों में से
पिचहत्तर फ़ीसदी हैं महिलाएं
हत्या की शिकार महिलाओं में
कितनी ही मारी जाती हैं
अपने ही लोगों के हाथों
ये स्त्रियां क्यों हैं जान कर अनजान
क्यों देती हैं जन्म पुरुषों को
क्यों नहीं लगा देती विराम
इन अनवरत चलने वाले षड़यंत्रों को
क्यों नहीं करतीं वे ऐसा
क्योंकि वे स्त्रियां हैं...
:: वीना करमचन्दानी की कविता... आज वीना जी का जन्मदिन है, इसलिए उन्हें इस कविता के माध्यम से अशेष शुभकामनाएं :
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