आपका-अख्तर खान

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26 अप्रैल 2013

कहानी में ट्विस्ट होना जरुरी है ..... :)

कहानी में ट्विस्ट होना जरुरी है ..... :)
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जिस्म बिकता है
बाजारों में भी .......
उसकी चुकानी
पड़ती है कीमत .......
एक 'इमोशन लेस' 'यूज'
और फिर 'थ्रो'
उसमें वो
बात कहाँ .......
बुझाने गए थे आग
खुद झुलस कर चले आये .....
अब क्या -
अन्दर की सुलगती
आग को
शांत कैसे किया जाये ?
नया दांव -
'इमोशनल' प्रपंच का ,
जिस्म तो जिस्म है ,
आंगन का हो तो
सबसे बेहतर -
कमसिन कौमार्य
समर्पित मन
दों रातें बिस्तर पर
'आत्मसंतुष्टि'
'इमोशन' के साथ 'यूज'
जैसे ईश्वर पा लिया .......
तन शांत
मन शांत
और
जेब भी शांत .......
क्योकि -
कीमत कुछ भी नहीं ,
बस -
मीठे शब्दों का भंडार
जो 'इक्वेलेंट' हैं
'फ्री ऑफ़ कास्ट' के .....
इसलिए -
जिस्म बिकता है
बाजारों में भी
लेकिन -
आँगन के जिस्म की
बात अलग है ......
'इमोशनल ट्रेपिंग' से
'इजली ऐव्लेविल' जो है .......!!!!!!!!!

बहुत डायरेक्ट और बोल्ड लहजा है ना .... लाईक करने में ही लोगों के हाथ कांप जायेंगे .... इस स्टेटस को डालने का कारन है ... आज जब लोगों को बलात्कार के खिलाफ जन आन्दोलन में झंडा उठाये देख रही हूँ .... तो कुछ ऐसे चेहरे भी नजर आ रहे हैं जो कितनी लड़कियों को घूप्प अँधेरे कमरे में सिसकियाँ लेने के लिए छोड़ चुके हैं ... ये महज सोच नहीं वास्तविकता है .... बीते कुछ समय में कई बरबादियाँ तो मेरे आँखों के सामने से ही होकर गुजरी हैं ....हाँ --- मेरी बात से कोई यह मतलब ना निकाले की मैं भी उन्ही भुक्तभोगियों में से हूँ .... ना .... मैं नहीं हो सकती .... क्योकि मेरे पास मर्यादा ... संस्कारों .... समझदारी का इतना मजबूत कवच है .... जिसे तोड़ पाना ... किसी के लिए आसान नहीं ... कम से कम तब तक जब तक मैं उसे खुद ना उतारू .... और वह होना नहीं |

मैं किसी को नीचा दिखाने के लिए ये सब नहीं लिख रही .... बल्कि मेरा मकसद बस इतना है ... की ये ‘इमोशनल ट्रैपीगं’ के पहलु को भी सबके सामने ला सकूँ ....इक नजरिया दे सकूँ ...क्योकि ये भी बलात्कार जैसा ही घिनौना है .... जिसमे मन की आबरू को तार तार किया जाता है .... जिससे ऐसा दर्द छुट जाता है ... जो ना दिखाया जा सकता है और ना झेला जा सकता है |

मेरी सभी लोगों से गुजारिश है .... कम से कम उन प्रतिष्ठित लोगों से भी ....जिनकी वाल से मेरी वाल की दुरी बहुत ज्यादा है ....जो गलत के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं ....

ये भी एक मुद्दा है .... एक बुराई है ....समाज की ....हो सके तो इसके खिलाफ भी आवाज बुलंद कीजिये ... क्योकि इस तरह के हादसे ... हर दिन हर पल हमारे सामने समाज में घट रहे हैं और हम महसूस नहीं कर पा रहे .... |

और सभी इमोशनल फूल लड़कियों से यही कहना चाहती हूँ ..... समझो ..... बात को ! ....रिश्तों में शर्तें नहीं होतीं .... जहाँ सहजता नहीं ....वहां रिश्ता कैसा .... दिल की सुनो जरूर .... लेकिन दिमाग भी खोल कर रखो .... युहीं किसी की भी लच्छेदार बातों में बहने की जरूरत नहीं .... बस ! सुधर जाओ ....!

प्रियंका राठौर

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