आपका-अख्तर खान

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26 अप्रैल 2013

मातम चाहत का मना रहा था .......

दोस्तों के आदेश पर कुछ नयी पंक्तियाँ आप सब FB FRNDZ की मोहब्बतों के नाम ...............

मातम चाहत का मना रहा था .......
वो ख़त के पुर्ज़े __उड़ा रहा था ........

अपनी मोहब्बत के मर्सिये को .......
मैं सुन रहा था , वो गा रहा था .........

' इश्क ' को बनाकर _फिर तमाशा ......
' हुस्न ' हँस के ताली बजा रहा था .......

मोहब्बत में निकले सारे उलटे .......
अंदाज़े ' वो ' जो लगा रहा था .......

तेरी शादी का कार्ड मुझको .....
सालगिराह पर रुला रहा था .....

तेरी झलक को तरस रहा हूँ .........
कौन कम्बख़त बता रहा था ?????

मीर -ग़ालिब कल पागल 'शाश्वत'.....
चाहत की गजलें गुनगुना रहा था ....

########### 'शाश्वत '

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