आपका-अख्तर खान

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30 अप्रैल 2013

एक दिन आधी रात के बाद

एक दिन आधी रात के बाद
शहर की पांच मूर्तियां
चौराहे के चबूतरे पर मिलीं
और पांचों ही आंसू बहा कर रोने लगीं

महात्मा फुले विलाप करने लगे
'मैं केवल मालियों का होकर रह गया '
छत्रपति शिवाजी बड़ा अफसोस जता रहे थे
'मैं मराठों में ही क़ैद होकर रह गया'
आंबेडकर उंगली उठाकर बता रहे थे
'मैं बुद्ध विहार तक महदूद कर दिया गया’
तिलक कहते रहे
‘मुझ पर चितपावनों का ही घोषित अधिकार है’

गांधी अपनी सिसकियों को गले में ही रोक कर बोले
‘आप सभी बडे नसीब वाले हैं
कम से कम एक समुदाय तो है आप लोगों के पीछे ..
मुझ पर तो सिर्फ और सिर्फ
सरकारी दफ्तरों की
दीवारों का ही दावा हैं।‘

:: कुसुमाग्रज :: अनुवाद मीना त्रिवेदी

1 टिप्पणी:

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