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30 अप्रैल 2013

करना सियासत, तिजारत की ख़ातिर

करना सियासत, तिजारत की ख़ातिर
इससे तो अच्छा है नाक़ारा रहते ।

चूल्हे बुझाकर, अलावों का मजमा ।
इससे तो अच्छा है कुहरे में रहते ।।

गर है लियाक़त का आग़ाज़ सजदा ।
इससे तो अच्छा है आवारा रहते ।।

महलों की खिड़की से रिश्तों को तकना ।
इससे तो अच्छा है गलियों में रहते ।।

ग़ैरों की महफ़िल में बेवजहा हँसना ।
इससे तो अच्छा है तन्हा ही रहते ।।

बेमानी वादों से जनता को ठगना ।
इससे तो अच्छा है तुम चुप ही रहते

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