आपका-अख्तर खान

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16 अप्रैल 2013

अब भी खड़ी हूं अलकनंदा के तट पर

अब भी खड़ी हूं अलकनंदा के तट पर
इंतजार में
कि ढल गया सूरज, तो क्‍या
मुरझा गए हाथों के फूल
तो क्‍या
कि‍या था तुमने वादा
शाम का
कि सूरज जब हो उतावला
जाएगा संध्‍या से मि‍लने
मैं भी उतनी ही बेताबी से
आउंगा तुमसे मि‍लने
बस वहीं करना तुम मेरा इंतजार

अब तो ढल गई शाम, बताओ न
कहां हो तुम.....

.......रश्‍मि शर्मा

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