अब भी खड़ी हूं अलकनंदा के तट पर
इंतजार में
कि ढल गया सूरज, तो क्या
मुरझा गए हाथों के फूल
तो क्या
किया था तुमने वादा
शाम का
कि सूरज जब हो उतावला
जाएगा संध्या से मिलने
मैं भी उतनी ही बेताबी से
आउंगा तुमसे मिलने
बस वहीं करना तुम मेरा इंतजार
अब तो ढल गई शाम, बताओ न
कहां हो तुम.....
.......रश्मि शर्मा
अब भी खड़ी हूं अलकनंदा के तट पर
इंतजार में
कि ढल गया सूरज, तो क्या
मुरझा गए हाथों के फूल
तो क्या
किया था तुमने वादा
शाम का
कि सूरज जब हो उतावला
जाएगा संध्या से मिलने
मैं भी उतनी ही बेताबी से
आउंगा तुमसे मिलने
बस वहीं करना तुम मेरा इंतजार
अब तो ढल गई शाम, बताओ न
कहां हो तुम.....
.......रश्मि शर्मा
इंतजार में
कि ढल गया सूरज, तो क्या
मुरझा गए हाथों के फूल
तो क्या
किया था तुमने वादा
शाम का
कि सूरज जब हो उतावला
जाएगा संध्या से मिलने
मैं भी उतनी ही बेताबी से
आउंगा तुमसे मिलने
बस वहीं करना तुम मेरा इंतजार
अब तो ढल गई शाम, बताओ न
कहां हो तुम.....
.......रश्मि शर्मा
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