उदयपुर.भगवान महावीर का जन्म हुआ, तब गर्मी का मौसम था। चैत्र
मास, द्वितीय पक्ष का तेरहवां दिन। चैत्र सुदी तेरस के दिन गर्भ में नौ
माह, सात दिन पूरे होने पर भगवान महावीर ने जन्म लिया। उस समय सभी ग्रह
उच्च स्थान में थे। चंद्र का प्रथम योग चल रहा था।सभी दिशाएं सौम्य और
विशुद्ध थीं।
आधी रात को हस्तोत्तर नक्षत्र के योग में माता त्रिशला ने पुत्र को
जन्म दिया। जब महावीर का जन्म हुआ, उस रात देवी-देवताओं के आवागमन से लोक
में हलचल मच गई, चारों ओर खुशियां छाने लगी।
प्रभु जन्म का महिमा गान
प्रभु जन्म का उत्सव मनाने 56 दिक्कुमारियां आई। वे कहती हैं
‘नमोत्थुणं ते रयण कुच्छि धारिए जगप्पईव दीतीए’ अर्थात पूरे जगत के दीप को
जन्म देने वाली माता आपको हम प्रणाम करते हैं। वे अपना परिचय देते हुए कहती
हैं कि वे अधो लोक में रहने वाली दिशा कुमारियां हैं और र्तीथकर के जन्म
की महिमा गाने आई हैं। प्रभु जन्म के बाद की गतिविधियों का संचालन
दिक्कुमारियां ही करती हैं। वे र्तीथकर और माता को स्नान कराती है।
यूं नाम हुआ महावीर
प्रभु जन्म का महोत्सव मनाने शक्र नामक देवेंद्र भगवान आते हैं। सोई
हुई माता त्रिशला के पास से वे प्रभु को ले जाते हैं। सुमेरू पर्वत के पंडग
वन में स्थित पंडुकंबल शिला पर जाते हैं। यहां सभी देव प्रभु का अभिषेक
करते हैं। इसी बीच शक्रेंद्र ने प्रभु का नाम महावीर रखा। सभी देव
अष्टाह्न्कि महोत्सव कर स्व-स्थान लौट जाते हैं।
कुंडलपुर में छाई थी खुशियां
राजा सिद्धार्थ को पुत्र जन्म की सूचना सबसे पहले प्रियंवदा नाम की
दासी ने दी। पुत्र जन्म की खुशी में राजा सिद्धार्थ ने दासी को तोहफे में
आभूषण दिए। कुछ ही समय में राज परिवार में पुत्र जन्म की खबर पूरे कुंडलपुर
में फैल गई। बड़े भाई नंदी वर्धन ने छोटे भाई के जन्म की खुशी में गरीबों
को दान करने लगे। प्रभु की बड़ी बहन सुदर्शना ने सहेलियों में खुशी बांटी।
सांसारिक नामकरण हुआ ‘वर्धमान’
कुछ दिनों तक उत्सवी कार्यक्रमों के बाद राजा सिद्धार्थ ने प्रभु का
नाम वर्धमान रखा। बालक वर्धमान का लालन-पालन उच्च संस्कारों के बीच हुआ।
बालक होने पर भी वे वीर, साहसी और धैर्यशाली थे। बाल समय में ही वर्धमान के
साथ कई ऐसी घटनाएं हुई, जिनमें उन्होंने साबित किया कि वे सामान्य बालक
नहीं हैं। वर्धमान आठ वर्ष के हो चुके थे, वे बहुत ही बुद्धिमान हो गए थे।
यह जानकर माता-पिता में अपार खुशी थी।
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