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13 अप्रैल 2013

कविता मात्र , भावनाओं और छंदों का मेल नहीं

कविता मात्र , भावनाओं और
छंदों का मेल नहीं , कविता तो
है समुन्दर भावनाओं का ,जहाँ
मात्राओं और छंदों का कोई खेल
ही नहीं , कविता तो है सिर्फ और
सिर्फ भावना , और भावनाओं का
कोई मेल नहीं , भावनाएं नहीं हैं
मोहताज़ मात्राओं और छंदों की ,
ये तो है मात्र अभिव्यक्ति प्रेम
और शब्दों की ,कवि तो है बस
आज़ाद पंछी , आज़ादी है जिसे
बैठने की किसी भी दरख़्त और
टहनी पे , और मैं ! मैं तो हूँ
आजाद पंछी , जो कहीं भी बैठता
और कभी भी कहीं भी उड़ जाता है
मैं तो बस एक कवि हूँ
अपने ही शब्दों में बस
अपनी बात कह जाता हूँ
और शायद बस इसी लिए
मैं एक कवि कहलाता हूँ
बस एक कवि कहलाता हूँ !!!

सुधीर " धीर "

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