"पहला
प्यार ?...अरे यार क्या केल्क्यूलेटर लेकर प्यार की गिनती कर रहे हो
...?....जो लोग कह रहे हैं "पहला प्यार " उनके लिए प्यार त्यौहार नहीं
...प्यार उपहार नहीं ...प्यार श्रृंगार नहीं ...प्यार व्यवहार नहीं
...प्यार संस्कार नहीं ,,,प्यार व्यापार है ...प्यार बाज़ार है ...गिनती का
गणित है , देह का फलित है ...जो कह रहे हैं --"पहला प्यार" वह एक से अधिक
प्यार कर चुके हैं ...और आगे करेंगे भी ...फिर क्या पहला प्यार ...क्या
नहला प्यार ...क्या दहला प्यार ? ...इनको कोई क्या बताये कि प्यार एक और
केवल एक ही होता है ...यह तो सभ्य संस्कारित समाज की बात हो गयी ...बाकी
चरित्रहीनो की बस्ती में "पहला प्यार " ओपनिंग बेट्समेन जैसा कोई जुमला है
...छिनरे -छिनारों की बस्ती में "पहला प्यार " --- "लगे रहो मुन्ना भाई "
--जैसा कोई वाकया या वारदात है ...जो कहे "पहला प्यार " समझ जाना प्यार की
पगडंडी पर उसकी रफ़्तार ." ----राजीव चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)