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27 अप्रैल 2013

'प्रमुख सचिव चाहें तो रुक जाए भ्रष्टाचार'


जयपुर.एंटीकरप्शन ब्यूरो के एडीजी अजीतसिंह ने कहा है कि एसीएस और प्रमुख सचिव यानी विभागीय प्रमुख ठान लें और सतर्कता आयुक्तों को सक्रिय कर दें तो भ्रष्टाचार को काबू किया जा सकता है। उनसे बेबाक बातचीत :
 
एसीबी में अचानक ये सक्रियता कैसे आई?
 
ये टीम स्पिरिट का कमाल है। भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कर दिखाने में गर्व का एहसास। पहले एसीबी में आने पर आदमी ये सोचता था कि उसे मेनस्ट्रीम से अलग कर दिया है। अब तो एसीबी में आने को कतार लगी है। 
 
क्या बड़े शिकार की वजह मॉडर्नाइजेशन नहीं है?  
 
मॉडर्नाइजेशन भी है, इक्विपमेंट्स भी, लेकिन रिजल्ट की वजह है टीम स्पिरिट। आधुनिक उपकरण हों, कुछ करने का इरादा न हो तो कुछ नहीं कर सकते। ..हमारी प्लानिंग बहुत अच्छी है। सामने वाला क्या डिफेंस लेगा उसके एस्केप रूट्स क्या होंगे, हम देख लेते हैं। अजमेर एसपी का केस देखिए, 30 लोग इन्वॉल्व थे, लेकिन गोपनीयता पर जरा आंच नहीं आई।
 आपका सबसे बड़ा फेल्योर क्या रहा?
 
कोई बड़ा केस नहीं। ट्रैप में कई बार पैसा लेते समय सामने वाले को आभास हो जाता है। 
 
आपका सबसे मजबूत केस ?  
 
अजमेर डेयरी के एसके शर्मा का, जिसमें 4.98 करोड़ रु. नकद और 11 किलो सोना बरामद हुआ। देश की किसी भी एंटीकरप्शन एजेंसी की यह सबसे बड़ी कारवाई थी। आईपीएस अजयसिंह और फर्जी पायलट प्रकरण बड़े थे। एसपी राजेश मीणा प्रकरण इस रूप में अनूठा था कि अजमेर के 11 में से नौ एसएचओ, एडिशनल एसपी और एसपी तक इसमें इन्वॉल्व पाए गए। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त ने भी इस केस की तारीफ की। 
 
ऐसे मामलों में जातिगत दबाव कितना आता है?  
 
जो परिपाटियां बनी हैं, भरपूर प्रयास हो रहा है कि कार्रवाई नहीं हो। अजयसिंह का केस भी इसकी मिसाल है, लेकिन हमने सब चीजें मेरिट्स पर तय कीं। मुझे तो यहां तक कहा गया कि बड़ी मुश्किल से तो एक राजपूत आईपीएस बना और आपने उसे आते ही खत्म कर दिया।
 
क्या आप इसका कोई उदाहरण देंगे? 
 
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के एफए के यहां 54 करोड़ की एफडी बरामद हुईं। विभाग के प्रमुख लोगों और मुखिया को इसका पता ही नहीं था। ये आदमी पूरे बोर्ड का खाता अकेले ही ऑपरेट कर रहा था। ये 11 करोड़ की एफडी खुद भुना चुका था और बाकी की तैयारी थी। पूरा सिस्टम ही कोलेप्स हो चुका था। उस विभाग के अफसर, चेयरमैन, सेक्रेटरी सब इसके लिए जिम्मेदार और जवाबदेह हैं। उन्होंने व्यवस्था को सही क्यों नहीं रखा? ये मामला प्रशासनिक चूक का नहीं, आपराधिक लापरवाही का नमूना है। ये भी संभव है कि इन सबकी मिलीभगत से ही ये सब हो रहा हो।
 
लेकिन वे ऐसा क्यों नहीं करते?  
 
कोई भी बुरा नहीं बनना चाहता। ब्यूरोक्रेसी इस तरह भाई-बंदी से नहीं चल सकती। हम चार्जशीट प्रपोज करते हैं तो उसको ये एग्जॅनरेट (खारिज) कर देते हैं। 
 
एसीबी लोकायुक्त के तहत हो या मौजूदा स्थिति रहे?  
 
नतीजा इस पर निर्भर करता है कि आदमी कैसे हैं? फिर स्टेट और स्टेट के हैड की विल की भी बात है। मुख्यमंत्री ने हमें जो मांगा वह दिया और हमने कर दिखाया। 
 
एसीबी मंत्रियों के खिलाफ कुछ नहीं करती?  
 
नगर पालिका चेयरमैन, जिला प्रमुख आदि के खिलाफ तो हमने कार्रवाई की। शिकायतें ठोस थीं, क्रॉस चेक में सही निकलीं, लेकिन किसी बड़े मामले में ऐसी सूचना आएगी तो हम जरूर कार्रवाई करेंगे। कुछ भी एक्शनेबल होता है तो छोड़ते नहीं।
 
मंत्री बाबूलाल नागर के केस में कार्रवाई क्यों नहीं हुई?  
 
उसमें प्रक्रिया पूरी नहीं होने के आरोप थे। वह मामला साक्ष्य लायक नहीं था। सरकार ने उस आधी-अधूरी प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया था।
 
क्या पुलिस वाले और पटवारी ही सबसे भ्रष्ट हैं? 
 
ये आम आदमी के संपर्क में रहते हैं। सिंचाई-पीडब्लूडी जैसे कई विभागों में तो भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है। इसमें सब कुछ तय है। कौन शिकायत करेगा? ठेकेदार देता है, इंजीनियर लेता है, इसे पकड़ना मुश्किल है।
 
क्या कोई मंत्री भी आपको भ्रष्टाचार की सूचनाएं देता है?  
 
 
पीडब्लूडी मंत्री भरतसिंह खुद चेक करवाते हैं और उन्होंने हमारे पास कई मामले भेजे भी हैं। हम उनके विभाग में जब भी कोई कार्रवाई करते हैं तो वे बधाई देते हैं। परसादीलाल मीणा ने भी कुछ मामले रेफर किए थे।
 
सरकारी सिस्टम भ्रष्टाचार से कैसे मुक्त हो सकता है? 
 
 
प्रमुख सचिव, एसीएस या विभाग प्रमुख ठान लें तो क्या नहीं हो सकता!
 
कोई उदाहरण ?
  
प्रदेश में अवैध माइनिंग हो रही है। पर्यावरण का विनाश हो रहा है। पैसा इफरात में आ रहा है और अपराध बढ़ रहे हैं। विभाग सैटेलाइट इमेजिंग करवा ले और हर दो माह में चेक करे तो अवैध खनन का पता चल जाएगा। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन में अवैध वसूली भी बड़ा भ्रष्टाचार है। ओवरलोडिंग मामलों में टोल बैरियरों के जरिये कंप्यूटराइज्ड धर्मकांटों को एक सेंट्रल सिस्टम से जोड़ दें तो ओवर लोडिंग भी खत्म हो जाएगी और जुर्मानों से सरकार का रेवेन्यू भी बढ़ेगा।
 
भ्रष्टाचार के मामले काबू होने में ही नहीं आ रहे?  
 
सरकारी विभागों की आंतरिक विजिलेंस सही काम करे तो हो सकता है। कार्यप्रणाली टाइम बाउंड हो, सशक्तऔर ट्रांसपेरेंट हो। आंतरिक शिकायतों की मॉनिटरिंग और शिकायतों की जांच तेजी से हो और दोषी लोगों पर कार्रवाई हो तो कौन कहता है कि सिस्टम ठीक हो सकता।
 
सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का जिम्मेदार कौन है?  
 
हर विभाग को स्वच्छ रखने के लिए उसका हैड जिम्मेदार है। सतर्कता की जिम्मेदारी और जवाबदेही उसी की है। ट्रांसफर, पोस्टिंग, वर्क डिस्ट्रीब्यूशन आदि पर ध्यान दें तो यह सब नहीं हो। सिस्टम पर जितना वॉच हैड्स को रखना चाहिए, उतना वे नहीं रखते। बेसिक जिम्मेदारी तो उन्हीं की है, क्योंकि हमारा सिस्टम ब्यूरोक्रेटिक प्रोसेस से चलता है।
 
 
राजनेताओं के कितने दबाव आते हैं?
 
किसी ने कभी दबाव नहीं डाला। मुख्यमंत्री ने हमें फ्री हैंड दे रखा है। राजस्थान में एसीबी कई मामलों में सीबीआई से भी ज्यादा स्वतंत्र है। सीबीआई ज्वाइंट सेक्रेटरी या इससे ऊंचे लेवल के अधिकारियों पर कार्रवाई करती है तो उसे सरकार से अनुमति लेनी होती है। लेकिन राजस्थान में एसीबी के साथ ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। जितनी भी कार्रवाइयां हमने की हैं, वे सभी हमने अपने स्तर पर कीं और इनके लिए कभी किसी से अनुमति नहीं ली।

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