दर्ज़ा, वो मकाम ‘हुनर-ओ-फन’ चाहिए
हमदर्दी नहीं ... तुम्हारी जलन चाहिए
दोस्तों से .... जी भर गया .. अब बस
हमें कायदे का .... एक दुश्मन चाहिए
साथ इज्ज़त के ... जिंदा रहने के लिए
हौसला जिगर में, सर पे कफन चाहिए
सूझ रहा है कोई खेल .... नया शायद
दिल हमारा उन्हें ... दफ’अतन चाहिए
जो कहते है खुद को आइना समाज का
दिखाने को उन्हें .... एक दरपन चाहिए
बोझ दिल का हल्का करने को ‘अमित’
शायरी में ..…… और .. वज़न चाहिए
दर्ज़ा, वो मकाम ‘हुनर-ओ-फन’ चाहिए
हमदर्दी नहीं ... तुम्हारी जलन चाहिए
दोस्तों से .... जी भर गया .. अब बस
हमें कायदे का .... एक दुश्मन चाहिए
साथ इज्ज़त के ... जिंदा रहने के लिए
हौसला जिगर में, सर पे कफन चाहिए
सूझ रहा है कोई खेल .... नया शायद
दिल हमारा उन्हें ... दफ’अतन चाहिए
जो कहते है खुद को आइना समाज का
दिखाने को उन्हें .... एक दरपन चाहिए
बोझ दिल का हल्का करने को ‘अमित’
शायरी में ..…… और .. वज़न चाहिए
हमदर्दी नहीं ... तुम्हारी जलन चाहिए
दोस्तों से .... जी भर गया .. अब बस
हमें कायदे का .... एक दुश्मन चाहिए
साथ इज्ज़त के ... जिंदा रहने के लिए
हौसला जिगर में, सर पे कफन चाहिए
सूझ रहा है कोई खेल .... नया शायद
दिल हमारा उन्हें ... दफ’अतन चाहिए
जो कहते है खुद को आइना समाज का
दिखाने को उन्हें .... एक दरपन चाहिए
बोझ दिल का हल्का करने को ‘अमित’
शायरी में ..…… और .. वज़न चाहिए
अमित जी ने बहुत ही कमाल लिखा है अख्तर भाई।
जवाब देंहटाएंआप दोनों का हृदय से आभार।