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25 अप्रैल 2013

कहीं कुछ भी नहीं बदला


करेंट पोस्‍टमार्टम में छपी कवि‍ता
* * * * * * * * **
कहीं कुछ भी नहीं बदला
बस एक
भ्रम टूटा है
और आंखों का कोर
तब से भीगा जा रहा है....

ये आंसू भी तुम्‍हारी तरह
दगाबाज हैं
बि‍न बुलाए आते हैं
और
न चाहने पर भी
रि‍सते रहते हैं
लुप्‍त नदी की तरह
धरा और चट़टान का
सीना चीरकर...

कुछ दि‍न
और
बस कुछ दि‍न
प्रेम न सही, भ्रम ही होता
खाली मुट़ठि‍यों में
अहसासों की छांव तो होती
यादों में
एक नाम तो होता.....

छलि‍ए
दो मुस्‍कान दि‍ए थे तुमने
अब आंचल भर
आंसू के फूल दि‍ए हैं
भुला सकूं
इतने हल्‍के नहीं उतरे थे तुम

कहो तुम्‍हीं
क्‍या करूं उन आवाजों का
जो दि‍नरात
गूंजते हैं कानों में
छलि‍या तू...दगाबाज तू...
और
मेरा प्‍यार भी तो है तू....

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