आपका-अख्तर खान

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05 मार्च 2013

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी, तेरे जाँ-निसार चले गये

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी, तेरे जाँ-निसार चले गये
तेरी रह में करते थे सर तलब, सरे-रहगुज़ार चले गये

तेरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतज़ार चली गयी
मेरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठकर मेरे ग़मगुसार चले गये

न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म, न हिकायतें न शिकायतें
तेरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख्तियार चले गये

ये हमीं थे जिनके लिबास पर सर-ए-रू सियाही लिखी गयी
यही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गये

न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफा, ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हें ज़ुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गये

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