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14 मार्च 2013

एक खास सवाल :: राजस्थान पत्रिका को क्या समझें - विज्ञापन पत्रिका-लुटेरों का सहयोगी और झूंठे समाचारों का पुलिन्दा ? क्या इस ओर


by Jeengar Durga Shankar Gahlot (Notes) on Tuesday, April 24, 2012 at 12:06am
एक  खास सवाल :: राजस्थान पत्रिका को क्या समझें - विज्ञापन पत्रिका-लुटेरों का सहयोगी और झूंठे समाचारों का पुलिन्दा ?
क्या  इस ओर भी ध्यान देंगे - पीसीआई चेयरमेन न्यायमूर्ति काटजू ?

गत दिनों की ही बात है. 'राजस्थान पत्रिका' ने १७ अप्रैल २०१२ मंगलवार को अपने 'कोटा प्रकाशन' के 'कवर पृष्ठ' को 'कोटा का सबसे बड़ा अखबार' एवं 'राजस्थान में नं. 1 अखबार'  के 'विशेष शीर्षक' के साथ प्रकाशित किया था. जिसमें इसके वर्तमान मालिक श्री गुलाब जी कोठारी का यह सन्देश 'सबके दिल में पत्रिका' भी प्रकाशित है. फिर, तीन दिन बाद ही, २० अप्रैल शुक्रवार को इसके (राजस्थान पत्रिका) मुख पृष्ठ पर ही यह समाचार प्रकाशित हुआ - " सवाई माधोपुर में बजरी माफिया की करतूत - तहसीलदार पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश - आरोपी फरार, पुलिस पर सहयोग नहीं करने का आरोप ". इसमें तहसीलदार भगवान सहाय इन्दोरिया पर हुए हमले की घटना का समाचार प्रकाशित है. किन्तु - अगले दिन ही, २१ अप्रैल शनिवार को दैनिक भास्कर के कोटा प्रकाशन में तहसीलदार भगवान सहाय के हवाले से ही यह समाचार प्रकाशित हुआ - " मुझ पर हमला हुआ, मुझे ही नहीं पता, अखबार को पता होगा : तहसीलदार".

इस तरह से, 'तहसीलदार पर हमला' से सम्बंधित राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हुए समाचार को दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुए समाचार ने 'झूंठा व गलत' बताया. लेकिन, 'भास्कर' पर हमलावर बनी रहने वाली 'पत्रिका' की ओर से भास्कर में प्रकाशित इस समाचार पर कोई प्रतिक्रिया प्रकाशित नहीं की गई - जो निश्चित ही 'पत्रिका पाठकों' के लिए विचारणीय है. वहीं, इससे यह भी साबित हो रहा है कि - 'पत्रिका में क्या प्रकाशित हो रहा है, इस देखने व समझने वाला अब कोई नहीं है और जो हैं तो वे सिर्फ़ 'कारोबारी' ही बने हुए हैं. जो हर संभव तरीके से अधिकाधिक कमा कर 'गुलाब जी' को समर्पित कर रहे हैं और गुलाब जी भी इस हो रही भरपूर कमाई को प्राप्त कर 'आनंदित बने हुए हैं.

शायद, इसीलिए अब गुलाब जी का समूचा ध्यान 'सम्मानित' होने और 'नैतिकतावादी प्रवचन-लेखन' पर ही केंद्रित बना हुआ है, पत्रिका में प्रकाशित हो रही विभिन्न प्रकार की लूट की सूचनाओं और समाचारों पर नहीं. प्रमाण स्वरूप - 'विज्ञापन' के नाम पर गत दिनों ही प्रकाशित हुई ये 'लूट की सूचनाएं' कुछ इस प्रकार से हैं ---

(१) १६ अप्रैल २०१२ की 'पत्रिका' में प्रकाशित सूचना (विज्ञापन) : "राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार/स्वरोजगार/छात्रवृत्ति योजना - कम्प्यूटर प्रशिक्षण हेतु आवेदन आमंत्रित-२०१२-१३". 'नाईस' (n.i.c.e.) एन.जी.ओ.' नाम की संस्था की ओर से प्रकाशित हुए इस 'विज्ञापन' में इस 'एनजीओ' के मूल कार्यालय का कोई अता-पता प्रकाशित नहीं है. सिर्फ़ इसकी 'फ्रेंचाइजी इन्क्यारी' (FRANCHISE ENQUIRY) के लिए संपर्क मोबाईल नं. तथा जयपुर के सोडाला में खोले गए इसके 'राज्य समन्वयक' कार्यालय का पता प्रकाशित है, जो कभी भी बंद या परिवर्तित हो सकता है.  'पत्रिका' के कोटा संस्करण के पृष्ठ सं. ३ पर प्रकाशित इस 'सूचना' में ऊपर की ओर ही कोने में बारीक़ अक्षरों में जरुर प्रकाशित है - 'विज्ञापन'. इस प्रकाशित विज्ञापन के तहत आवेदन कर्ताओं की योग्यता ८वीं से शुरू होकर स्नातकोत्तर/डिप्लोमा तक तय की हुई है. किन्तु, इन प्रशिक्षण हेतु विभिन्न नाम से ली जाने वाली एकमुश्त या मासिक आधारित 'शुल्क राशि' का कोई विवरण भी इस विज्ञापन में प्रकाशित नहीं है.

(२) १८ अप्रैल २०१२ की 'पत्रिका' में प्रकाशित सूचना : "कार्यालय सहायक एवं सूचना तकनीकी में व्यवसायिक प्रशिक्षण हेतु आवेदन सूचना". लेकिन, 'सूचना' के नाम पर प्रकाशित हुए इस 'विज्ञापन' में कहीं पर भी 'विज्ञापन' प्रकाशित नहीं है तथा न ही इसे प्रकाशित करने वाली 'संस्था' का ही नाम प्रकाशित है. सिर्फ़ जयपुर के न्यू सांगानेर रोड पर खोले गए इसके 'क्षेत्रीय अधिकारी' कार्यालय के पते में 'रिट्स' (RITES) प्रकाशित होने से ही यह समझ में आ रहा है कि - यह सूचना किसी 'रिट्स' एन.जी.ओ.' नाम की संस्था की ओर से प्रकाशित हुई है.'पत्रिका' के कोटा संस्करण के पृष्ठ सं. ७  पर प्रकाशित हुई इस 'सूचना' के अनुसार आवेदन कर्ताओं की योग्यता १०वीं / १२वीं / स्नातक व डिप्लोमा तय की हुई है. किन्तु, इसमें भी, इन प्रशिक्षण हेतु विभिन्न नाम से ली जाने वाली एकमुश्त या मासिक आधारित 'शुल्क राशि' का कोई भी विवरण प्रकाशित नहीं है तथा न ही इस संस्था के मूल कार्यालय का ही अता-पता प्रकाशित है.

वही, 'पत्रिका' के उक्त दोनों ही उल्लेखित अंकों में प्रकाशित हो रही विभिन्न 'सूचनाएं' (विज्ञापन) भी यही दर्शा रही है कि - राजस्थान का नं. १ अखबार होने का दावा करने वाली यह 'राजस्थान पत्रिका' खुले रूप से और पुरे साहस के साथ 'लुटेरों की सहयोगी' बनी हुई है और यह इसका रोजाना का 'कारोबारी कार्य' बना हुआ है. जिसे निश्चत ही प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में इसके मालिक और ज्ञान-गंगा के प्रवचनकार बने हुए गुलाब जी कोठारी का भी सहयोग व संरक्षण प्राप्त होगा. क्योंकि- मालिक की मर्जी के बगैर इतना बड़ा 'लूट का कारोबार' चलाना, किसी के भी लिए कदापि संभव नहीं हो सकता.

वही यह भी उल्लेखनीय है कि -  हमने पूर्व में भी, इसी वर्ष २०१२ के प्रथम माह जनवरी में अपने इसी 'ब्लॉग' में यह निम्न वर्णित आलेख लिखा था, जिसे हमारी 'फेस बुक' पर भी 'पोस्ट' किया था --- 



" एक सवाल : 'राजस्थान पत्रिका' को क्या समझें - नेतिकतावादी या अ-नेतिकतावादी ?" :: " समाचार पत्र / पत्रिकाओं को पढ़ने के शोकीन हम बचपन से ही रहे है. पराग, चंदामामा, बालभारती जैसी बाल  पत्रिकाओं से शुरू हुई यह यात्रा साप्ताहिक हिंदुस्तान  व्  धर्मयुग से होती हुई सारिका, कादम्बिनी और नवनीत तक पहुंची. 'नवनीत' के हम आज भी नियमित पाठक है. इसी तरह से समाचार पत्रों में स्थानीय स्तर से निकलने वाले अपने समय के प्रमुख साप्ताहिक जागृति और सोशलिस्ट समाचार व् कोमी धारा से पढ़ने का शुरू हुआ सफर प्रदेश के तीनों प्रमुख दैनिक नवज्योति, राष्ट्रदूत व् राजस्थान पत्रिका से जुड़ा. जो बाद में नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, जनसत्ता, नई दुनिया व् BILITAJ  से भी जुड़ा.
हम आज भी अपने राजस्थान प्रदेश के चारों प्रमुख दैनिक समाचार पत्र नवज्योति, राष्ट्रदूत, राजस्थान पत्रिका और भास्कर के नियमित पाठक है तथा ये चारों ही पत्र हमारे परिवार में आते हैं. लेकिन, 'राजस्थान पत्रिका' के वर्तमान मालिक श्री गुलाब कोठारी जी ने जिस योजना के साथ देश के विभिन्न प्रदेशों में (इसमें प्रकाशित सुचना अनुसार ७ प्रदेश व् ३० संस्करण) इसका फैलाव किया है और इसको देश का नंबर १ समाचार पत्र बनाने का सफलतम प्रयास किया है, वह वास्तव में कबीले-तारीफ ही है. फिर, इसमें विभिन्न विषयों पर प्रकाशित होने वाले श्री कोठारी जी के प्रभावपूर्ण आलेख भी अपना अलग ही स्थान बनाए हुए है. इनके इन आलेखों में 'नेतिकता' पर विशेष जोर दिया होता है. होना भी चाहिए, बुद्धिजीवी व् विद्वान होने का यही तो फायदा है. 'वैचारिक चिंतन' पर खूब लिखों, चाहे खुद अमल ना करो - कोई बात नहीं, कहने वाला भी कौन है. सब सुनने और पढ़ने वाले ही तो हैं.
तो, हम बात कर रहे हैं 'राजस्थान पत्रिका' की, जिसमें प्रकाशित होने वालों समाचारों और विज्ञापनों में अंतर करना अब दिनों-दिन मुश्किल सा होता जा रहा है. अब यह सब कुछ आदरणीय गुलाब जी की नज़र में है या नहीं है, वो ऊपर वाला ही जाने. हमारे विचार में शायद नहीं है, वर्ना तो इनकी इस लोकप्रिय कही जाने वाली 'पत्रिका' में  इस तरह का 'घालमेल' नज़र नहीं आता - ऐसा हमारा मानना है. चूँकि वे मालिक है तो अवश्य ही उनकी भी इस चल रहे 'घालमेल' कुछ ना कुछ 'सहमति' तो हो ही रही होगी. आखिर उनकी भी तो प्रतिष्ठा का सवाल होता है.
खैर, यह माननीय गुलाब कोठारी जी अपना 'निज' मामला है. हम बात कर रहे हैं आज दिनांक ७ जनवरी २०१२ शनिवार के कोटा के प्रकाशित हुए संस्करण की, जिसके पेज-२ पर प्रकाशित है एक विज्ञापन- "जागो पार्टी की जनसुनवाई - २५ शहरों में बिना रिश्वत काम करवाएं जायेगें". लेकिन इसे इस तरह से छापा हुआ है कि यह 'विज्ञापन' कम और 'समाचार' अधिक दिखाई दे रहा है. क्योंकि 'बॉक्स' में छपे हुए इस विज्ञापन के आखिर में छोटे से शब्द में कोष्टक में लिखा हुआ है - (वि.).वही, इसी अंक के पेज-१७ पर 'बॉक्स' में ही छापा हुआ है एक दूसरा समाचार- "सी.बी.आई. पुराण - टिप्पणी अनंत मिश्रा", लेकिन यह विज्ञापन नहीं है बल्कि समाचार ही है. किन्तु यदि इस दोनों ही प्रकाशित सामग्री के कारण रूपी मर्म को समझा जाएँ तो आज ही के दिन इन दोनों ही प्रकाशनों का कारण काफी गंभीरतम महसूस हो रहा है. किसी और को हो या ना हो, हमें तो महसूस हो ही रहा है. आखिर, यह एक 'विद्वान' व्यक्ति का समाचार पत्र जो है.
इस प्रकाशित सामग्री के सम्बन्ध में हम जो समझ पा रहे है, वह ये है कि- आज से जयपुर में 'प्रवासी भारतीय दिवस' का शुभारंभ हो रहा है, जिसमें 'पत्रिका' की ओर से गुलाब जी भी शामिल होंगे हीं.इसलिए हमारा यह मानना है कि 'पत्रिका' की ओर से इन आने वाले प्रवासियों को यह सन्देश देना हो सकता है कि- उनकी पत्रिका प्रदेश में चल रहे 'आरक्षण' विरोधी अभियान' में पूरी सहयोगी बनी हुई है तथा भंवरी मामले में सी.बी.आई. की चल रही जाँच निष्पक्ष नहीं है यानि प्रदेश की कांग्रेस सरकार परोक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार के सहयोग से सी.बी.आई. का दुरूपयोग कर रही है. इनका यह मिलना भी तो इनके समाचार-कारोबार का ही एक अंग भी है.
जबकि, सच यह है कि प्रदेश में पनप रहा यह 'आरक्षण विरोधी अभियान' सिर्फ ओर सिर्फ जागरूक व् संगठीत होते जा रहे 'दलित समुदाय'  के 'दमन' किये जाने के लिए है, जो आज भी जातीय आधारित नफरत व् शोषण के शिकार बने हुए है. वहीँ, भंवरी मामले में सी.बी.आई. पूरी सजगता से ही कम करती हुई आज सफलता के इस मुकाम तक पहुंची है जिसे चाहे 'पत्रिका' वाले माने या ना माने, उनकी मर्जी है. वहीँ, इस सच को विद्वान गुलाब जी भली भांति समझ कर भी ना समझ बने हुए है. चूँकि, वह भी एक कारोबारी 'सवर्ण हिंदू' जो है. इसलिए उनको भी ना तो 'दलित' ही अच्छे लगते है और ना ही 'अशोक गहलोत' ही अच्छे लगते है. फिर भंवरी भी तो छोटी 'नट' जाति की ही तो है, तो वह भी इनको क्यों अच्छी लगेगी. चूँकि, अशोक गहलोत, मुख्य मंत्री पद पर आसीन है, इसलिए उनको तो मज़बूरी में ही झेलना पड़ रहा है, ताकि अधिकाधिक सरकारी विज्ञापन उनकी 'पत्रिका' को ही मिलते रहें और सरकार पर भी दबाव बनायें रहे. शायद, इसी विचार से आज प्रकाशित हुए इन समाचारों के बहाने वे इन प्रवासी भारतीयों से अच्छा कारोबार प्राप्त कर सके . 
वैसे, दिखाई भी दे ही रहा है कि दबाव में रहकर ही गहलोत सरकार द्वारा इनको भरपूर रूप से 'विज्ञापनों' से नवाजा जा रहा है, लेकिन इसके बदले में 'पत्रिका' इस गहलोत सरकार के प्रति कितनी मददगार बनकर वफ़ादारी निभा सकेगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. हाँ, 'पत्रिका' ने भाजपा के दिवंगत प्रभावी नेता ठाकुर साहिब भैरों सिंह जी शेखावत के प्रति अपनी 'वफ़ादारी' भरपूर रूप से निभाई है. शायद, ये वफ़ादारी इनको मिले हुए 'केसरगढ़ भवन' का ही प्रतिफल रही है, जो शेखावत जी की बदोलत इनको यानि 'पत्रिका' को मिला हुआ है.
वैसे, हम इस बात को खुले रूप से कहने का साहस तो कर ही रहे है कि- इस विद्वान व्यक्ति गुलाब कोठारी जी की यह 'राजस्थान पत्रिका' पूरी तरह से 'लुटेरे कारोबारियों' को समर्पित व् उनकी ही हितेषी बनी हुई है. जिसके प्रमाण स्वरुप इसी में प्रकाशित हुए कुछ समाचारों/विज्ञापनों का उल्लेख हम यहाँ पर कर रहे है, जो इस प्रकार है -
(१) '९ संस्थान सीज' ::  दिनांक ५/१/२०१२ के कोटा संस्करण में पेज-१३ पर '९ संस्थान सीज' शीर्षक से यह ७ लाइन का छोटा सा समाचार है. इस समाचार में देवली (जिला टोंक) में चल रहे अनाधिकृत कोचिंग, नर्सिंग, पोलोटेक्निक व् कम्पूटर संस्थानों के खिलाफ बुधवार (यानि- ४ जनवरी २०१२) सुबह प्रशासन ने पुलिस के सहयोग से संस्थानों के संचालन सम्बन्धी कागजात जांचे और ९ संस्थानों को सीज कर रिकार्ड कब्जे में लिया.' प्रकाशित हुआ है. यह समाचार इस पेज पर प्रथम कालम में एकदम नीचे की ओर इस तरह से प्रकाशित हुआ है, जिसका प्रकाशित होना या नही होना कोई मतलब नहीं रख रहा है. जबकि, यह एक महत्वपूर्ण समाचार है जिसे प्रथम पेज पर ही मोटे-मोटे अक्षरों में प्रकाशित होना था, लेकिन नहीं हुआ. जबकि यह समाचार उन लुटेरे कारोबारियों से जुड़ा हुआ है जो विभिन्न शिक्षा के नाम पर फर्जी तरीकों से लुट का कारोबार चलाए हुए है ओर प्रदेश में सभी ओर फैले हुए है. 'पत्रिका' भी इन लुटेरों को अच्छी तरह से जानती व् पहचानती है, लेकिन खामोश है क्योंकि इन्ही से तो भारी कीमत के विज्ञापन मिलते रहते है.
पत्रिका के कोटा संस्करण के दिनांक १८ व् १९/०४/२०११ तथा २४/०८/२०११ के अंकों में प्रकाशित हुए 'कम्पूटर एवं प्रबंधन में प्रशिक्षण हेतु प्रवेश/आवेदन सुचना' के विज्ञापन भी आखिर इन्ही लुटेरों के ही तो विज्ञापन है जिनके प्रकाशन की अच्छी राशि भी 'पत्रिका' को प्राप्त हुई होगी. शायद तभी, देवली के छापे सम्बन्धी समाचार में इन सीज हुए ९ संस्थानों के नाम तक प्रकाशित नहीं हुए है. हैं ना 'पत्रिका' की जागरूकता.
(२) 'आयकर छापा : गुटखा व्यवसायी के १३ ठिकानों पर छापा' :: दिनांक १३/१०/२०११ के कोटा संस्करण के अंतिम पेज-१६ पर प्रकाशित हो रहे तीन कालम के इस समाचार में कहीं पर भी इस व्यापारी व् उसकी फर्म का नाम तक प्रकाशित नहीं है. कारण क्या रहा है - 'पत्रिका' वाले ही जाने'. जबकि, इस प्रकाशित हुए समाचार के अनुसार इस छापे में करोड़ों रुपयों की 'आयकर चोरी' के दस्तावेज मिले हैं ओर इस व्यापारी के १३ ठिकानों पर छपे लगे है. हैं ना 'पत्रिका' की जागरूकता.
(३) 'माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर का विज्ञापन - विद्यार्थियों/अभिभावकों/शाला प्रधानों के लिए सुचना' :: दिनांक ०६/१२/२०११ के जयपुर संस्करण में पेज-०७ पर प्रकाशित यह विज्ञापन इस तरह से बारीक़ फॉण्ट में छापा हुआ है कि- इनको किन संबंधितों ने पढा होगा, ऊपर वाला ही जाने या 'पत्रिका' वाले ही जाने या विज्ञापन निकलवाने वाला 'माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर' ही जाने. जबकि 'पत्रिका' चाहता तो वह इसे विज्ञापन के साथ ही पहले पेज का 'खास समाचार' भी बना सकता था. क्योंकि यह विज्ञापन हैं - 'राजस्थान बोर्ड द्वारा जामिया उर्दू, अलीगढ की मान्यता समाप्त किये जाने से सम्बंधित. हैं ना पत्रिका की जागरूकता.
(४) 'बस, नाम से सरकारी 'टेलेंट सर्च' :: दिनांक ०७/११/२०११ के कोटा संस्करण में पेज-२ पर पत्रिका संवाददाता प्रमोद मेवाडा के हवाले से प्रकाशित हो रहे इस समाचार को यदि ध्यान  से पढा जाये तो जानकर लोग समझ ही जायेगें कि यह समाचार बहुत देर से जाकर अब 'पत्रिका' में इसलिए छपा होगा, शायद इन 'टेलेंट सर्च' करने वाले संस्थानों ने 'पत्रिका' को 'विज्ञापन' देना या इनकी कीमत कम देना शुरू कर दिया होगा. वर्ना तो, इस चल रही 'धोखेबाजी व् लुट' का यह समाचार तो काफी समय पहले ही नियमित रूप से छप चुका होता. हैं ना पत्रिका कि जागरूकता.
(५) आखिर में - 'गुलाब कोठारी जी आलेखित 'चोथा स्तंभ' :: दिनांक ०६/११/२०११ रविवार के कोटा संस्करण के मुख प्रष्ट पर प्रकाशित है माननीय गुलाब कोठारी जी का आलेखित यह 'चोथा स्तंभ'. जो, हाल ही नियुक्त हुए 'भारतीय प्रेस परिषद' के अध्यक्ष जस्टिस काटजू साहिब को संबोधित करते हुए लिखा गया है.यों तो, इनका यह स्तंभ काफी लंबा है. फिर इसमें इनके ही लिखे हुए कुछ विचार आप पाठकों के विचार-मनन के लिए यहाँ पर प्रस्तुत कर रहे हैं - 'आज प्रेस भी वैसा नहीं रहा, जैसा कि आजादी की लड़ाई में था. नेताओं, अधिकारीयों की तरह वह भी जनता से दूर हो गया. भू-माफिया, शराब माफिया की तरह प्रेस भी विज्ञापनदाता को ब्लैकमेल करने लग गया. टीवी चैनलों ने इस मामले में कई दिग्गजों की हालत बिगाड़ रखी है. लगभग सभी प्रदेशों के मुख्य मंत्री इनके दबाव की झांकी प्रस्तुत करने की स्थिति में होंगे.' ----- 'श्रीमान, परिषद को प्रेस के मालिकों की संपत्ति की भी जाँच करवानी चाहिए. वहाँ भी बेनामी संपत्तियों का अम्बार मिलेगा. यही नहीं, आधे से ज्यादा तो प्रेस वाले ही बेनामी / झूठे साबित हो जायेंगे, जो नेताओं की कृपा से सरकारी विज्ञापन बटोरकर ब्लैकमेलिंग करते रहते हैं.' ----- 'आपको काँटों के बीच जीना है, गुलाब की तरह. प्रेस को प्रेरित करके जनहित से जोड़ना है. अकेला मीडिया लोकतंत्र को स्वस्थ रख सकता है. देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकता है. आज देश में, हर शहर में एक ही क्लब फैला हुआ है - प्रेस क्लब. जहां कोई भी सदस्य अपने परिवार के साथ जाकर गौरवांवित नहीं होता.' ----- 'संविधान केवल जनहित के पक्षकार को ही प्रेस मानता है. न तो व्यापारियों को, न ही दलों के पक्षकारों को.इश्वर आपको शक्ति दे कि देश में लोकतंत्र की पुन: प्रतिष्ठा के लिए आपकी आहुतियाँ सिद्ध हो सकें.' तो, सम्मानीय पाठकजनों, यह है श्री गुलाब कोठारी जी के प्रकाशित हुए इस 'चोथा स्तंभ!' की कुछ प्रमुख झलकियाँ.
आखिर में, अब आप पाठकजनों को ही तय करना है कि - गुलाब जी की 'कहनी ओर करनी' में कितना अंतर है. संभव है कि - गुलाब जी भाई, सीधे ही या अन्य किसी के भी माध्यम से अब हम पर किसी भी तरह से क़ानूनी कार्यवाही कर दे / करवा दे. या फिर, 'हम ऐरे-गेरे के मुंह नहीं लगते है' - कहकर चुप हो जाएँ, यह सब स्थिति तो अब आने वाला समय ही दिखायेगा. खैर, अब जो भी होगा, देखा जायेगा. जब ओखली में सिर दे ही दिया है, तो मुसल से क्या डरना. या तो सिर तोड़ देगा या खुद टूट जायेगा. वैसे यह एक कहावत भी है, जिसे हम सभी जानते व् समझते भी है कि - जिनके खुद के घर शीशे के हों, उनको दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेक्नें चाहिए. ऐसे में, अब गुलाब जी भाई को ही तय करना है कि - 'राजस्थान पत्रिका' को क्या समझें - नैतिकतावादी या अ-नैतिकतावादी ?
जय हिंद. - जय जन-गण."

ऐसे में, पहले कि ही भांति, आज भी हमारा यही सवाल है और जो इस आलेख का 'शीर्षक' भी है कि - एक  खास सवाल :: राजस्थान पत्रिका को क्या समझें - विज्ञापन पत्रिका-लुटेरों का सहयोगी और झूंठे समाचारों का पुलिन्दा ? क्या  इस ओर भी ध्यान देंगे - पीसीआई चेयरमेन न्यायमूर्ति काटजू ? 

- जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, प्रकाशक ओर संपादक, पाक्षिक समाचार सफर, सत्ती चबूतरे की गली, मकबरा बाज़ार, कोटा - ३२४००६ (राज.) ; मोब. ०९८८७२-३२७८६" ( २३  अप्रैल २०१२ )

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