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20 मार्च 2013

अकबर, जहांगीर या फिर सबसे कट्टर मुग़ल शासक, सभी खेलते थे रंगों की होली!

रंगों का त्यौहार होली पूरी दुनिया में अपने अनोखे अंदाज के लिए जाना जाता है।कहते हैं कि इस दिन रंगों में रंग ही नहीं मिलते बल्कि दिल भी आपस में मिल जाते हैं। फिल्म शोले के एक सुप्रसिद्ध गाने के बोल भी इसी ओर इशारा करते हैं।हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह में होली का त्यौहार मनाया जाता है, इस माह की पूर्णिमा को पूरी दुनिया में होली पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
 
मान्यता के अनुसार होली पूर्णिमा के दिन हिरणकश्यपू नाम के राक्षस ने अपने पुत्र प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग लगा दी थी लेकिन इस आग में होलिका जलकर भस्म हो गई और भगवान विष्णु का भक्त होने के कारण प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ जबकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था।तभी से होली पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा चल निकली।होलिका दहन की इस परंपरा और कथा के बारे ने सभी जानते हैं।
 
होली खेलने की परंपरा कोई आधुनिक परंपरा नहीं है इसका उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रंथों नारद पुराण, भविष्य पुराण में मिलता है।कुछ प्रसिद्ध पुस्तकोंजैसे जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र में भी होली पर्व के बारे में वर्णनं किया गया है।

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