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26 मार्च 2013

एड्स और कैंसर पर जीत पाने वाला बर्लिन का मरीज़


टिमोथी रे ब्राउन को 1996 में पता चला कि उन्हें एचआईवी वायरस है. (तस्वीर गेटी)
आमतौर पर किसी मरीज़ के लिए मौत का फ़रमान होता है. लेकिन एक व्यक्ति ऐसा है जिसने इस गंभीर बीमारी पर जीत पाई और आज एक स्वस्थ जीवन जी रहा है.
टीमोथी रे ब्राउन को मेडिकल की दुनिया में ‘बर्लिन का मरीज़’ के नाम से जाना जाता है जो एड्स और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से उबर पाए. लेकिन उनका इलाज कैसे संभव हुआ ये भी एक रोचक किस्सा है. टिमोथी पहले मरीज है जो एचआईवी से पूरी तरह उबर चुके हैं.
एचआईवी एड्स से दुनिया के लगभग 3.4 करोड़ लोग प्रभावित हैं और इस बीमारी की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक बीमारियों में होती है.

एचआईवी

बीबीसी के मैथ्यू बैनिस्टर से बात करते हुए 47 साल के टिमोथी कहते हैं, “साल 1995 में मेरे पार्टनर ने कहा कि उसे एचआईवी और मुझे भी डॉक्टर से इसकी जांच करानी चाहिए. मेरे टेस्ट में भी एचआईवी पॉज़िटिव आया औऱ वो मेरे लिए मौत की सज़ा जैसा था. मुझे कहा गया कि मैं सिर्फ चंद साल और जी सकता हूं.”
"दूसरी कीमोथेरैपी के बाद डॉक्टरों ने कहा कि मेरी स्टेम सेल को बदलना होगा और मुझसे मिलान करने वाला स्टेम सेल दाता भी मिल गया. डॉक्टरों ने मेरी इम्यून सिस्टम को दाता के इम्यून सिस्टम से बदल दिया"
टिमोथी रे ब्राउन
डॉक्टरों ने उन्हें दवाईयां दी और उनका इलाज चलने लगा. फिर एक दिन वर्ष 2006 में साइकिल चलाते वक्त टिमोथी को चक्कर आने लगे और वो फिर डॉकटरों के पास गए. वहां जब दुबारा उनका टेस्ट हुआ तो पाया गया कि उन्हें रक्त का कैंसर ल्यूकीमिया है.
इस दूसरी बीमारी से निपटने के लिए उन्हें कीमोथेरैपी दी जाने लगी. टिमोथी कहते हैं, “दूसरी कीमोथेरैपी के बाद डॉक्टरों ने कहा कि मेरी स्टेम सेल को बदलना होगा और स्टेम सेल दाता भी मिल गया. डॉक्टरों ने मेरी इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षी तंत्र) को दाता के इम्यून सिस्टम से बदल दिया.”
टिमोथी कहते हैं कि इस इलाज का असर एक महीने में ही दिखने लगा. “मैं बेहतर महसूस करने लगा था. मेरी जांच हुई और मुझे स्वस्थ पाया गया. मेरे उपर एक शोध पेपर भी लिखा गया और क्योंकि मेरा इलाज बर्लिन में हो रहा था इसलिए मुझे बर्लिन का मरीज कहा गया.”

इलाज

टिमोथी कहते हैं उसके बाद उन्हें आज तक एचआईवी से संबंधित तकलीफ नहीं हुई. 2012 में उनपर एक लैब में परीक्षण हुआ जिसके बाद पाया गया कि उनके  की मृत कोषिकाएं हैं. लैब टेस्ट में पाया गया कि ये मृत एचआईवी सेल्स दोबारा पैदा नहीं हो सकते हैं और टिमोथी को एचआईवी मुक्त घोषित किया गया.
टिमोथी कहते हैं कि वो अब उस खतरनाक वायरस से मुक्त हो गए हैं लेकिन उनके इलाज को हर मरीज पर दोहराया नहीं जा सकता. वो कहते हैं कि स्टेम सेल को परिवर्तित करना बेहद जटिल प्रक्रिया है और क्योंकि उन्हें कैंसर भी था इसलिए उनके पास इस इलाज के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
टिमोथी अब एक गैर सरकारी संस्था चला रहे हैं और वो एचआईवी के इलाज पर काम करना चाहते हैं.

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