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16 मार्च 2013

कोई जज्बा औ ख़याल

Saroj Singh
जब किसी के ज़ेहन में
कोई जज्बा औ ख़याल
आवाज और तस्वीर के पैरहन में आने को
जी जान से मचला होगा !
तब उसने लकीरों के तिलस्म से
"हर्फ़ों" को बनाया होगा !
अपने जज्बे को जुबां की शक्ल देख
कितना इतराया होगा !
ऐ ज़बां को तह्ज़ीब बख्शने वाले
अब जो आकर देखो तो
इन हरफों के कुनबों ने
कितना शोर मचाया है ?
गर्द दह्शतों की ,
हुज़ूम मसाईलों का ,
झगडे मज़हबों के,
ज़िंदा रहने की होड मे मरते लोग ,
खुद को बचाने के एवज़
गैर का क़त्ल करते लोग .
वो तो भला हो उन परिंदों चरिंदों का
जो न पडे इन झमेलो मे
पहले जो बेखौफ रहते थे
अलबत्ते अब खौफज़दा से रह्ते हैं !
इलमी इंसानी तेवरो से अब वो बला के डरते हैं
गोया उनमे प्यार अमन ओ सुकून अब भी क़ायम है
और हम इन्ही नेमतों से महरूम हो गये !
ऐ जुबां को तह्ज़ीब बख्शने वाले
अब जो आकर देखो तो .....
तुम्हे इस ईजाद पर
अफ़सोस तो बहुत होगा
अफ़सोस तो बहुत होगा ...................!
~s-roz~

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