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25 मार्च 2013

खबर ही न हुई

खबर ही न हुई

दुनिया कब सिमट गई
खबर ही न हुई |
वो घर के बड़े - बड़े आँगन ,
जहाँ बैठ कर सब
खोल देते थे अपना मन
किसी को मनाते
और खफा भी हो जाते
उसने कब छोटा सा
रूप ले लिया
खबर ही न हुई |

आँगन पर वो तुलसी का पौधा
बच्चों का उसके चारों तरफ
भागते रहना |
सहेलियों की वो शरारतें
आम की चटनी और आचार
के नुस्खों की बातें
कब सिमट गए
खबर ही न हुई |

पडोसी का एक दूजे के
लिए वो प्यार , सम्मान
एक दूजे के सुख - दुःख
में शरीक होते वो लोग |
रिश्ते - नातों से मिलने के
वो खूबसूरत पल |
कहाँ सब खो गए
खबर ही न हुई |

करुणा , दया और सत्कार
जीत की हार
आत्मा का वो विस्तार
कहाँ सिमटता चला गया
पता ही चला |
वो आँगन कहाँ खो गया
पता ही न चला |

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