Satish Sharma
बहूत नाजुक हैं
मेरे ख्वाब .
यथार्थ की तेज़ धुप में
इनके कोमल पाँव जलते हैं .
सच और सपनों का
कोई साम्य नहीं .
फिर भी - दिन रात की तरह
दोनों साथ साथ चलते हैं .
कभी कभी सपने
यथार्थ पर भारी पड़ते हैं
सपनो के शूल - जब
भर दोपहर - पांवों में नहीं
दिल में गड़ते हैं
बहूत नाजुक हैं
मेरे ख्वाब .
यथार्थ की तेज़ धुप में
इनके कोमल पाँव जलते हैं .
सच और सपनों का
कोई साम्य नहीं .
फिर भी - दिन रात की तरह
दोनों साथ साथ चलते हैं .
कभी कभी सपने
यथार्थ पर भारी पड़ते हैं
सपनो के शूल - जब
भर दोपहर - पांवों में नहीं
दिल में गड़ते हैं
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