महाभारत में भीम और जरासंध की लड़ाई काफी प्रसिद्ध है। जरासंध मगध का
क्रूर शासक था। उसकी राजधानी राजगृह (राजगीर) थी। उसके आतंक से लोग त्रस्त
थे। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध किए जाने से वह नाराज
था, क्योंकि कंस उसके खास मित्रों में था। इसका प्रतिशोध लेने के लिए
जरासंध ने मथुरा पर 17 बार चढ़ाई की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल सकी।
इधर, इंद्रप्रस्थ नगरी का निर्माण पूरा होने के पश्चात एक दिन नारद
मुनि ने महाराज युधिष्ठिर को उनके पिता का यह संदेश सुनाया कि अब वे राजसूय
यज्ञ करें। इस पर महाराज ने श्रीकृष्ण से बात की तो उन्होंने भी
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन उनके
चक्रवर्ती सम्राट बनने के मार्ग में एक केवल एक रोड़ा था, मगध नरेश जरासंध।
उसे परास्त किए बिना वह सम्राट नहीं बन सकते थे और उसे रणभूमि मे परास्त
करना असंभव-सा ही था।
इस समस्या का समाधान करने के लिए श्रीकृष्ण भीम और अर्जुन के साथ
ब्राह्मणों का भेष बनाकर मगध की राजधानी राजगृह की ओर चल पड़े। वहां पहुंच
कर वे जरासंध के दरबार में गए। उन्हें ब्राह्मण समझकर जरासंध ने उनसे कुछ
मांगने का आग्रह किया। ब्राह्मण भेषधारी श्रीकृष्ण ने कहा कि अभी उनके
दोनों मित्रों का मौन व्रत है, जो अर्धरात्रि में समाप्त होगा। तब जरासंध
ने अर्धरात्रि में ही मिलने का वचन दिया और उन्हें ब्राह्मण कक्ष मे
ठहराया।
जरासंध अर्धरात्रि को आया, लेकिन उसे उन तीनों पर संदेह हो गया कि वे
ब्राह्मण हैं या नहीं। जरासंध ने उन्हें वास्तविक रूप में आने को कहा। इस
पर श्रीकृष्ण ने जरासंध को खरी-खोटी सुना दी। इससे वह क्रोधित हो गया और
कहा कि उन्हें जो भी चाहिए वे मांग लें और यहां से चले जाएं।
इस बात पर श्रीकृष्ण ने जरासंध को मल्लयुद्ध करने के लिए कहा और अपना
वास्तविक परिचय दे दिया। उसने मल्ल युद्ध के लिए भीम को चुना। अगले दिन
राजगृह स्थित मल्लभूमि में ही उसने भीम के साथ मल्लयुद्ध किया, लेकिन जितनी
बार भीम उसके दो टुकड़े करते उसका शरीर फिर से जुड़ जाता। इस पर श्रीकृष्ण
ने एक डंडी की सहायता से भीम को संकेत किया कि इस बार वह उसके टुकड़े कर
के दोनों टुकड़े अलग-अलग दिशा में फेंके। तब भीम ने वैसा ही किया और इस
प्रकार जरासंध का वध हुआ।
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