नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस द्वारा उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से
आतंकी लियाकत शाह की गिरफ्तारी पर विवाद गहरा गया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस
उसे समर्पण कर चुका आतंकी बता रही है। इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री
सुशील कुमार शिंदे से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला मिले।
उन्होंने इस मामले में एनआईए से जांच कराने की मांग की है। हालांकि,
दिल्ली पुलिस उमर के दावों से सहमत नहीं है।
दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस के कई अफसर भी दबी जुबान से कथित फिदायीन
आतंकी लियाकत की गिरफ्तारी पर सवाल उठा रहे हैं। वे कुछ पुलिस अधिकारियों
की वाहवाही बटोरने की होड़ का नतीजा बता रहे हैं। पुलिस की कहानी में कई
पेंच हैं। शनिवार को पुलिस ने अपने दावे के पक्ष में जामा मस्जिद इलाके के
गेस्ट हाउस के सीसीटीवी से संदिग्ध आतंकी की फुटेज भी जारी की। लेकिन इसमें
नजर आने वाला शख्स कैप पहने है और उसका चेहरा नजर नहीं आ रहा है, जिससे इस
फुटेज से कुछ साबित नहीं होता। गेस्ट हाउस में पहली बार संदिग्ध आतंकी के
बैग की मेटल डिटेक्टर से जांच की गई थी। लेकिन अगली बार जब वह हथियार और
विस्फोटक लाया तब कोई जांच नहीं की गई। यह भी पुलिस के दावे पर संदेह पैदा
करता है। पुलिस ने 20 मार्च को गोरखपुर में लियाकत को पकड़ लिया था लेकिन
गेस्ट हाउस पर छापा 21 मार्च की रात में मारा गया जबकि इस तरह के ऑपरेशन
में जैसे ही कोई पकड़ा जाता है, उससे मिली जानकारी को दूसरी टीम को देकर
तुरंत उस ठिकाने पर छापा डलवा दिया जाता है। इस मामले में तुरंत कार्रवाई न
करना भी पुलिस की कहानी पर सवालिया निशान लगाता है। लियाकत से मिली सूचना
पर 20 को ही रेड की जा सकती थी। वैसे भी, 1997 से पीओके में रह रहा लियाकत
दिल्ली के एक गेस्ट हाउस की पहचान में पुलिस की क्या मदद कर सकता था?
लियाकत द्वारा गेस्ट हाउस की निशानदेही पर रेड में एक दिन की देरी कहीं से
भी तर्कसंगत नहीं लगती।
पहले भी किए गए हैं फर्जी दावे
वाहवाही और आउट ऑफ टर्न प्रमोशन के लिए फर्जी कार्रवाई के मामलों में
दिल्ली पुलिस पहले भी फंस चुकी है। 1996 में तत्कालीन डीसीपी दीपक मिश्रा
की टीम ने एक शख्स को गिरफ्तार कर बम धमाके की चार वारदात सुलझाने का दावा
किया था। इस मामले में 7 पुलिसवालों को बारी से पहले तरक्की दी गई। लेकिन 3
महीने के अंदर ही जयपुर पुलिस ने इन धमाकों में शामिल असली आतंकवादियों को
गिरफ्तार कर दिल्ली पुलिस के दावे की पोल खोल दी। उस समय पुलिस की काफी
छीछालेदर हुई थी। अदालतों में भी बम धमाकों के मामले सुलझाने के पुलिस के
कई दावों की पोल खुल चुकी है।
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