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26 मार्च 2013

ड्रेन पाइप से कृत्रिम टांग बनाने वाला पाकिस्तानी डॉक्टर



डॉक्टर विकार कुरैशी
डॉक्टर विक़ार कुरैशी के बनाए कृत्रिम टांगों को सीरिया में तक़रीबन 100 लोगों को लगाया गया है.
पाकिस्तान और सीरिया के शरणार्थी कैंपों में ऐसे बहुत सारे शर्णार्थी हैं जो लड़ाई के दौरान अपने शरीर का कोई न कोई अंग गंवा चुके हैं. ऐसे लोगों के लिए पाकिस्तानी मूल के क्लिक करें प्रोस्थेटिक सर्जन डॉक्टर विकार कुरैशी भगवान का दर्जा रखते हैं.
दुनिया का सबसे सस्ता बनाने के लिए डॉक्टर कुरैशी को बहुत सराहा गया है.
डॉक्टर कुरैशी ड्रेन पाइप या निकास नली के सहारे लोगों के कटे हुए अंगों में लगाने के लिए  बनाते हैं.
वे इस ड्रेन पाइप से बनाकर कई लोगों की मदद कर चुके हैं.
साल 2005 में जब पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भूकंप आया था तब वहां कई लोग अपने शरीर का कोई न कोई अंग गंवा बैठे और परेशानी का सामना कर रहे थे.

कश्मीर में भूकंप

"वहां बेहद ख़राब हालात थे, संचार व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो चुकी थी, यातायात की कोई सुविधा नहीं थी, कोई सरकारी मदद नहीं थी ऐसे में हमने खुद अपने खर्चे पर टेंटों में चिकित्सा शिविर लगाया और धीरे-धीरे काम करने लगे"
डॉक्टर विकार कुरैशी
इस हादसे के बाद डॉक्टर कुरैशी ने वापिस पाकिस्तान जाने का फैसला किया. वहाँ पहुंच कर उन्होंने काफी कठिन हालात में पीड़ितों के लिए काम किया.
ख़ासकर मलबे में दबे हुए लोगों की मदद करना डॉक्टर कुरैशी के लिए बड़ी चुनौती थी.
इनमें से बहुत से लोग ऐसे थे जिनकी जान बचाने के लिए डॉक्टर कुरैशी को उनके पैर काटने पड़ गए, क्योंकि वे मलबे में दबकर बुरी तरह से कुचल गए थे.
लंदन में एक प्रोस्थेटिक सर्जन के तौर पर वे अक्सर अपने मरीज़ों को लगाया करते थे.
लेकिन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के इस संकटग्रस्त इलाके में ख़राब मौसम की वजह से उनके पास जरूरी सुविधाओं की भारी कमी थी.

ड्रेन पाइप से कृत्रिम अंग

कृत्रिम अंग
दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें कृत्रिम अंगों की जरूरत पड़ती है.
इन परिस्थितियों में डॉक्टर कुरैशी ने एक मु्फ्त अस्पताल बनाने की सोची जिससे ग़रीब और मजबूर मरीज़ो को सस्ते में इलाज मुहैया कराया जा सके.
इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन अपने मरीज़ों के लिए वे कृत्रिम अंगों का निर्माण प्लास्टिक की निकास नली या ड्रेन पाईप से करते हैं.
सबसे पहले उन्होंने ये सेवा पाकिस्तान के ज़रुरतमंदों को दी. बाद में श्रीलंका और अब सीरिया व तुर्की के सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोगों के लिए डॉक्टर कुरैशी ने काम किया.
बीबीसी से बातचीत करते हुए डॉ कुरैशी ने कश्मीर में पाए अपने अनुभव को बाँटा.
उन्होंने बताया, ''वहां बेहद ख़राब हालात थे, संचार व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो चुकी थी, यातायात की कोई सुविधा नहीं थी, कोई सरकारी मदद नहीं थी ऐसे में हमने खुद अपने खर्चे पर टेंटों में चिकित्सा शिविर लगाया और धीरे-धीरे काम करने लगे.''

जयपुर फुट से सहयोग

"उस भूकंप के दौरान एक 14-15 साल के बच्चे के उपर करीब एक टन की लकड़ी का तख्त़ा आ गिरा था, जो लाख कोशिश के बाद भी हटाया नहीं जा सका. जब ये बच्चा कोमा में जाने लगा तब उसके लकड़हारे पिता ने उसके बेटे के कहने पर उसके पाँव को काट दिया और बच्चे की जान बच गई"
डॉक्टर विकार कुरैशी
डॉक्टर कुरैशी कहते हैं, ''हमने पीड़ितों का कई तरह से इलाज किया. उनकी टूटी हड्डियां ठीक की. हड्डियों को जोड़ने के लिए प्लेट लगाई और दवा भी दी. लेकिन वहां सबसे ज़्यादा ज़रुरत उन्हें कृत्रिम अंग लगाने और उसे दोबारा स्थापित करने की थी.''
डॉ कुरैशी के अनुसार, “उस भूकंप के दौरान एक 14-15 साल के बच्चे के उपर करीब एक टन की लकड़ी का तख्त़ा आ गिरा था, जो लाख कोशिश के बाद भी हटाया नहीं जा सका. जब ये बच्चा कोमा में जाने लगा तब उसके लकड़हारे पिता ने उसके बेटे के कहने पर उसके पाँव को काट दिया और बच्चे की जान बच गई.”
उस भूकंप के बाद सिर्फ कश्मीर में ऐसे 740 लोग थे जिनके कोई ना कोई अंग पूरी तरह से ख़राब हो चुका था.
ये लोग हर उम्र के थे और इन्हें ज़ख्म के साथ छोड़ा नहीं जा सकता था.
ऐसे में डॉक्टर कुरैशी ने भारत के प्रसिद्ध जयपुर फुट से बातचीत की और दो साल के लंबे संघर्ष के बाद अंत में जयपुर फुट बनाने वाले डॉक्टर चिकित्सीय उपकरणों के साथ ट्रक से पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के इस हिस्से में पहुंचे.

सिलसिला जारी रखने की ख्वाहिश

कृत्रिम अंग
फाइल फोटो
डॉक्टर कुरैशी को जयपुर फुट तैयार करने की प्रणाली पर पूरी तरह से भरोसा नहीं था इसलिए उन्होंने एचडीपी या हाई जेनसिटी पॉलीएथलीन के प्रयोग वाली ड्रेन पाइप का इस्तेमाल किया.
ये ड्रेन पाइप दुनिया के हर कोने में हर रंग में आसानी से उपलब्ध हैं, जो त्वचा के रंग से मेल खाती है.
डॉ विकार कुरैशी ना सिर्फ अपने मरीज़ों को कृत्रिम अंग लगाते हैं और उन्हें ये बनाना भी सिखाते हैं ताकि आगे भी ज़रुरत पड़ने पर ये मरीज़ अपनी नाप के कृत्रिम अंग खुद बना लें.
विकार कुरैशी के अनुसार वे नहीं चाहते हैं कि कृत्रिम अंग बनाने का ये तरीका या हुनर उनके साथ ही खत्म हो जाए बल्कि हर ज़रुरतमंद को इसके बारे में इसे बनाना आना चाहिए.

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