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26 मार्च 2013

यह मीठा इतना अच्छा क्यों लगता है?


मीठा ऊर्जा ही नहीं देता, ख़ुशी मनाने के काम भी आता है
मिठाइयां, कितने रंगों, आकारों, नामों की हों, वो किसी भी तरह की पैकिंग में आती हों- कैडबरी के चॉकलेट से लल्लू हलवाई की जलेबी तक- खाने के लिए मन ललचा ही जाता है.
अक्सर ये जानते हुए भी कि ठीक नहीं है, एक के बाद एक टुकड़ा मुंह के रास्ते पेट में पहुंच ही जाता है. लेकिन इस मीठे में ऐसा ख़ास है क्या?
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि मीठे की चाह हममें सहज रूप से होती है क्योंकि ये हमारे ज़िंदा रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
हमारे स्वाद तंतु जीवन के लिए महत्वपूर्ण नमक, वसा और शक्कर को पसंद करने लिए विकसित हो गए हैं.

शक्कर है तो है जीवन

जब हम खाना खाते हैं तो सामान्य शक्कर, ग्लूकोज़, आंतों द्वारा सोख कर रक्त में पहुंचा दी जाती है जो समान रूप से शरीर की सारी कोशिकाओं में बांट दी जाती है.
दिमाग के लिए ग्लूकोज़ ख़ासतौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि सौ अरब स्नायु कोशिकाओं, जिन्हें न्यूरॉन्स कहा जाता है, के लिए यही एकमात्र ऊर्जा स्रोत है.
क्योंकि न्यूरॉन्स के पास ग्लूकोज़ के संग्रहण की क्षमता नहीं होती इसलिए इन्हें रक्त द्वारा लगातार इसकी आपूर्ति की ज़रूरत होती है. इसीलिए मधुमेह के रोगी, जिनका रक्त में शक्कर की मात्रा कम होती है, उनके कोमा में जाने की आशंका अधिक होती है.

कितनी तरह की शक्कर

शक्कर के तत्वों का पता लगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि खाद्य पदार्थों में इसके अलग-अलग नाम दिए जाते हैं. ज़्यादातर के अंत में 'ओज़' आता है.
  • ग्लूकोज़: सामान्य शक्कर, जो खून में घुल जाती है. टेबल शुगर या सकरोज़ का आधा भाग.
  • फ्रूक्टोज़: सामान्य शक्कर जो प्राकृतिक रूप से फलों में पाई जाती है. सकरोज़ का दूसरा आधा भाग.
  • सकरोज़: इसे सामान्यतः टेबल शुगर कहा जाता है. ये प्राकृतिक रूप से गन्ने और चुकंदर में पाई जाती है.
  • लैक्टोज़ः दूध की शक्कर, जो गाय के दूध में 5% से भी कम होती है.
  • मालटोज़ः ग्लूकोज़ के दो जुड़े हुए अणु
  • उच्च फ्रूक्टोज़ मकई शर्बत: जब आधे ग्लूकोज़ को फ्रूक्टोज़ में तब्दील कर दिया जाता है तो उसे मकई शरबत कहते हैं. रासायनिक रूप से ये सरकोज़ के बहुत करीब है.
हाल ही के शोधों से वैज्ञानिकों को पता चला है कि शक्कर का सिर्फ़ स्वाद ही हमारे दिमाग को उछाल दे सकता है.
परीक्षणों से पता चला है कि ऐसे प्रतिभागी जो शक्कर से मीठा किया गया पानी अपने मुंह में घुमाते रहे उन्होंने मानसिक परीक्षणों में उनसे बेहतर प्रदर्शन किया जो कृत्रिम रूप से मीठे किए गए पानी को मुंह में रखे थे.
वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के हालिया शोध से पता चला है कि नवजात मीठे को अन्य स्वादों के बजाय प्राथमिकता देते हैं.
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि मीठे के प्रति बच्चों की प्राथमिकता विकासमूलक है. क्योंकि बीते वक्त में जो बच्चे उच्च कैलोरी वाला ख़ाना पसंद करते थे उनके, खाने की कमी वाले समय में, बचने की संभावना ज़्यादा थीं.
लेकिन आज के वक्त की दिक्कत ये है कि परिष्कृत शक्कर बहुत आसानी से उपलब्ध है और बच्चों में मोटापे की समस्या को बढ़ा रही है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब सलाह देते हैं कि अभिभावक बच्चों को खाने या पीने की मीठी चीज़ें देने से बचें और मीठे को पहली पसंद बनाने से रोकें.

ज़्यादा मीठा बन सकता है ज़हर

शक्कर दरअसल मिजाज़ को ख़ुशनुमा बना सकती है क्योंकि ये शरीर को ‘ख़ुशी का हार्मोन’ सेरोटोनिन जारी करने के लिए प्रेरित करती है.
शक्कर से जो हमें जो त्वरित उछाल मिलता है, वो भी एक वजह है कि उत्सव या किसी उपलब्धि के अवसर पर हम मीठा खाने को तत्पर होते हैं.
लेकिन ज़्यादा मात्रा में खाए गए मीठे को संतुलित करने के लिए शरीर को ज़्यादा इंसुलिन भी छोड़ना पड़ता है. ये प्रक्रिया ‘शुगर-क्रैश’, ज़्यादा मीठा खाने से होने वाली थकान, की ओर धकेलती है जिससे और ज़्यादा मीठा खाने का मन करता है. ये अत्यधिक भोजन का एक चक्र बना सकती है.
सिर्फ़ यही नहीं हमारे शरीर को ये भी पता नहीं चलता कि क्या हमने ख़ास किस्म की शक्कर काफ़ी मात्रा में ले ली है.
शोधकर्ताओं के अनुसार सामान्य शक्कर फ्रूक्टोज़ से मीठे बनाए गए खाद्य और पेय पदार्थ उस तरह भरे होने का भाव पैदा नहीं करते जैसे कि उतनी ही कैलोरी वाले अन्य खाद्य पदार्थ करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसान प्राकृतिक रूप से मीठे के प्रति आकृष्ट होता है
येल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि दिमाग़ का वो भाग जो हमें खाने को प्रेरित करता है, ग्लूकोज़ से तो दब जाता है लेकिन फ्रूक्टोज़ से नही.
संबंधित परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने ग्लूकोज़ लेने के बाद फ्रूक्टोज़ के मुकाबले ज़्यादा संतुष्ट महसूस किया.
इन निष्कर्षों को साथ देखें तो ज़्यादा खाने का खतरा बढ़ता हुआ दिखता है.

छुपा हुआ है ख़तरा

ज़्यादातर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में मीठे के लिए सरकोज़ का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 50% फ्रूक्टोज़ होता है.
शरीर प्राकृतिक रूप से फलों, शहद, दूध में पाए जाने वाली शक्कर और गन्ने या चुकंदर से निकाली गई प्रसंस्कृत शक्कर में फ़र्क नहीं कर पाता है.
सभी किस्म की शक्कर को शरीर ग्लूकोज़ और फ्रूक्टोज़ में बदल देता है और यकृत में इन्हें परिवर्तित कर दिया जाता है. शक्कर को चर्बी या ग्लाइकोजेन में बदल दिया जाता है या फिर ग्लूकोज़ में बदलकर कोशिकाओं के लिए रक्त में शामिल कर दिया जाता है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के अनुसार आपके एक दिन में खाने-पीने से मिलने वाली ऊर्जा के बाद अतिरिक्त शक्कर 10% से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. चाहे ये शहद से मिले, फलों से जूस या जैम से या फिर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ या टेबल शुगर से.
इसका मतलब ये हुआ कि आदमी को 70 ग्राम और महिला को 50 ग्राम से शक्कर लेनी चाहिए, हालांकि ये आकार, उम्र और सक्रियता पर निर्भर करता है. 50 ग्राम शक्कर 13 चम्मच शक्कर या दो कैन कोल्ड ड्रिंक या आठ चॉकलेट बिस्किट के बराबर होती है.

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