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18 मार्च 2013

कटे सिर के साथ महाभारत का युद्ध देखा था इस वीर ने


 
 
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जयपुर.सीकर। महाभारत के युद्ध का जिक्र आते ही कृष्ण और अर्जुन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। लेकिन इस युद्ध में ऐसे ऐसे नायक थे जो अपने एक बाण से तीनों लोकों को जीतने की क्षमता रखते थे। ऐसे ही एक वीर थे बर्बरीक, जिन्हें पूरी दुनिया खाटू श्याम या श्याम बाबा के नाम से जानती है। जिनके लिए ये भी कहा जाता है हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा। उनकी बहादुरी और बल से श्रीकृष्ण भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उनका सिर काटने के बाद श्रीकृष्ण ने ही खाटू नगरी में रखा था। यहां पर एक पहाड़ी पर उनके सिर ने पूरा महाभारत का युद्ध देखा। इतना ही नहीं कृष्ण ने उन्हें अपना नाम अपनी पहचान दी। वे श्याम के नाम से जाने गए और खाटू में होने की वजह से उन्हें खाटू श्याम जी कहा जाता है।

शिव ने दिए तीन अभेद्य बाण
बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलावती के पुत्र थे। बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया। बचपन से ही इस वीर बालक ने अस्त्रों शस्त्रों से खेलना शुरू कर दिया। बर्बरीक ने अपनी मां से युद्ध कला सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेद्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था।
 मां ने कहा, हारने वाले का साथ देना

महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सामने युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और तब इनकी माता ने इन्हें युद्ध में भाग लेने की आज्ञा दे दी और यह वचन लिया की तुम युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ निभाओगे। जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने पहुंचे तब भगवान श्री कृष्ण ने इन्हें कहा कि तुम्हारे तूणीर में तो तीन ही तीर हैं, तुम यहां क्या करोगे। बर्बरीक ने कहा कि इन तीन तीरों से मैं तीन लोक जीत सकता हूं। आप चाहें तो मेरी परीक्षा ले लें। श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि वे एक तीर से यहां पर जितने पेड़ हैं, उनके पत्ते बींध दें। कृष्ण तो स्वभाव से ही चंचल हैं, उन्होंने एक पत्ता अपने पैर से दबा लिया। बर्बरीक ने तीर छोड़ा, युद्धभूमि तो क्या पूरी सृष्टि के पत्ते उन्होंने एक ही तीर से बींध दिए और कृष्ण जी से कहा कि प्रभु अपना पैर हटा लीजिए नहीं तो इस तीर से आपको कोई नहीं बचा पाएगा। अंतत: भगवन कृष्ण ने पैर हटाया और तीर ने उस अंतिम पत्ते को भी बींध दिया।

श्रीकृष्ण ने मांगा बलिदान

श्रीकृष्ण उनका युद्ध कौशल देखकर समझ गए कि यदि यह वीर बालक युद्ध में आ गया तो एक ही तीर से पूरे सेना को भी नष्ट कर सकता है। किसी समय कौरव हार रहे हो तो उनका भी साथ दे सकता है। अथवा युद्ध 18 दिन से पहले ही समाप्त हो जाएगा। उनकी बातचीत में काफी समय बीत चुका था और युद्ध शुरू नहीं हो रहा था तो बर्बरीक ने कृष्ण जी से पूछा कि युद्ध शुरू क्यों नहीं हो रहा।
कृष्ण ने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरंभ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिये एक वीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा। श्री कृष्ण ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो युद्ध काफी जल्दी समाप्त हो जाता। वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर खुशी-खुशी अपने सिर का दान दे दिया। लेकिन साथ ही पूरा युद्ध देखने की इच्छा भी प्रकट की।

कटे शीश को पर्वत पर रख दिया श्रीकृष्ण ने

बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूरी की। बर्बरीक के कटे सिर ने पूरा युद्ध इसी ऊंचे पर्वत से देखा। यही स्थान खाटू नगरी थी और बाद में यहीं पर खाटू श्याम जी का मंदिर बनाया गया। कृष्ण जी ने बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें अपना नाम और अपनी पहचान दी। तब से उन्हें श्याम या श्याम बाबा के नाम से जाना जाने लगा। खाटू में होने की वजह से खाटू श्याम के नाम से प्रचलित हुआ। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा और कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया।

राजा खट्टवांग ने की स्थापना

खाटू की स्थापना राजा खट्टवांग ने की थी। खट्टवांग ने ही बभ्रुवाहन के देवरे में बर्बरीक के सिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। खाटू की स्थापना के विषय में अन्य मत प्रचलित है। कई विद्वान इसे महाभारत के पहले का मानते हैं तो कई इसे ईसा पूर्व के समय का मानते है लेकिन कुल मिलाकर विद्वानों की एकमत राय यह है कि बभ्रुवाहन के देवरे में सिर की प्रतिमा की स्थापना महाभारत के पश्चात हुई। श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से युद्ध समाप्ति के पश्चात उनका शीश खाटू में दफनाया गया था और बाद में वहीं पर खाटू श्यामजी मंदिर बनवाया गया था।

कैसे बना मंदिर

एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वत: ही बहा रही थी। उस जगह पर खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। फिर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। खाटू के श्याम मंदिर में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि पास ही में स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। खाटू श्याम जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के गांव खाटू में बना हुआ है। श्री खाटू श्याम मंदिर जयपुर से उत्तर दिशा में वाया रींगस होकर 80 किलोमीटर दूर पड़ता है।

खाटू श्यामजी मंदिर में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में बड़े मेले का आयोजन होता है। हर साल इस मेले में काफी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। यह मेला फागुन सुदी दशमी के आरंभ और द्वादशी के अंत में लगता है।
हज़ारों श्रद्धालु यहां पदयात्रा करके पहुंचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश के दरबार में हाजिरी देते हैं। इस मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रत्येक एकादशी और रविवार को भी यहां भक्तों की लंबी कतारें लगी होती हैं।

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