Rajiv Chaturvedi
"सुबह मेरी पलकों से गिर कर जमीन पर टूट जाती है,
आसमान रोता है तो धरती मुस्कुराती है
यह दौर ऐसा है कि सदियाँ सहमी सी करती है कलेंडर की इबादत
जज़्बात के जंगल में जिन्दगी क्यों रूठ जाती है." -----राजीव चतुर्वेदी
"सुबह मेरी पलकों से गिर कर जमीन पर टूट जाती है,
आसमान रोता है तो धरती मुस्कुराती है
यह दौर ऐसा है कि सदियाँ सहमी सी करती है कलेंडर की इबादत
जज़्बात के जंगल में जिन्दगी क्यों रूठ जाती है." -----राजीव चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)