Atul Kanakk
घिरा रहता हूँ तुम्हारी यादों से इस तरह
कि अकेला होने की फुर्सत ही नहीं मिलती/
यादों के सम्माहेन को तोड़ने का मन नहीं करता,
मन नहीं करता अपने आसपास बिखरे सन्नाटे को तोड़ने का
मग़र बात भी ज़रूरी है शायद
तो आओ, आज फिर हम एक दूसरे के बारे में सोच कर
एक दूसरे से संवाद करें/
छोड़ो न चुगलखोर शब्दों को एक तरफ
आओ, हम खमोश यादों के साथ एक दूसरे से बात करें।।
घिरा रहता हूँ तुम्हारी यादों से इस तरह
कि अकेला होने की फुर्सत ही नहीं मिलती/
यादों के सम्माहेन को तोड़ने का मन नहीं करता,
मन नहीं करता अपने आसपास बिखरे सन्नाटे को तोड़ने का
मग़र बात भी ज़रूरी है शायद
तो आओ, आज फिर हम एक दूसरे के बारे में सोच कर
एक दूसरे से संवाद करें/
छोड़ो न चुगलखोर शब्दों को एक तरफ
आओ, हम खमोश यादों के साथ एक दूसरे से बात करें।।
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